तू मेरे लिये इतना परेशान सा क्यूं है,
गर तुझमें बसा हूं तो मुझे ढूंढता क्यूं है।
इंसान से जब तू नहीं कर सकता मुहब्बत,
फिर मस्जिदो मन्दिर में मुझे पूजता क्यूं है।
दुनिया को बनाकर जब दे दिया तुझको,
उस पर भी न जाने तू रूठता क्यूं है ।
मैंने तो बनाया था एक इंसान तुझे रहबर,
औरत की तू असमत को फिर लूटता क्यूं है।
आले हसन ख़ाँ (रहबर)