कई दिन की बढ़ी हुई दाढ़ी मूंछे, उलझे हुए बेतरतीब बाल, शरीर भी मैला कुचैला, पैर नंगे और हाथ एक १२ बोर की बंदूक पर रखे, कमर में कारतूसों की बेल्ट बंधे वह धूल मिटटी व रक्त से लिथड़ा हुआ सड़क के किनारे फुटपाथ पर पड़ा था | शरीर दुबला पतला था | उसका पेट पीठ को लग रहा था| मालूम होता था जैसे कई दिन का भूखा या फिर बीमार था कसबे में जैसे ही यह खबर फैली की पुलिस ने एक शातिर बदमाश टेढ़ीकोन पर एक ज़बरदस्त मुठभेड़ के बाद धराशाही कर दिया है तो कौतूहलवश लोगों की भीड़ वहां पर जमा होने लगी, बच्चे, महिलायें, बृद्ध और युवक सभी उस ओर दौड़े चले जा रहे थे |
टेढ़ीकोन वैसे भी बहुत प्रसिद्ध स्थान था क्योंकि वहां पर बहुधा घटनाएं घटती रहती थीं | एक तो वह सुनसान क्षेत्र था दूसरे कस्बे से शहर की ओर पश्चिम से पूर्व जाने वाली मुख्य सड़क को करीब दो किलोमीटर दूरी पर दक्षिण की ओर से आने वाला रास्ता काटता था | और ठीक पूर्व की ओर उससे कुछ दूरी पर उत्तर दिशा से भी आकर एक दूसरा रास्ता उससे मिलता था जिससे एक टेढ़ा चौराहा सा बन जाता था उसके बाद सड़क उत्तर पूर्व की ओर एक कोण बनाती हुई चली जाती थी संभवतः उस टेढ़े चौराहे को इसलिए टेढ़ीकोन का नाम दिया गया था जिसके आसपास आम, अमरुदों के बाग़ अधिकता से लगे थे और बागों की यह श्रंखला बहुत दूर तक चली गयी थी जिससे बदमाशों के लिये यह एक सुरक्षित और सुगम रास्ता बन गया था इसलिए वर्षों से बदमाशों के बड़े बड़े गिरोह टेढ़ीकोन से निर्भय होकर इधर से उधर आते जाते थे | दिन में जो रमणीक स्थान हरयाली की अति सुंदर छटा बिखेरता आकर्षक एवं मनमोहक दिखाई देता, तो रात्रि में वही भयावह दिखाई देने लगता था, ऐसी बात नहीं थी कि पुलिस विभाग को बदमाशों के इस बाईपास की जानकारी नहीं थी किन्तु उन्हें भी तो अपनी जान अपने कर्तब्यों एवं दायित्वों से अधिक प्यारी थी |
बदमाशों को जब कभी कोई कांड करना होता, तो वह बड़ी आसानी और बिना किसी रिस्क के अपने काम को अंजाम देते और सुरक्षित वहां से चले जाते, अब जब कभी वह वाहनों कि भी लूटपाट करने लगे और साथ ही महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी घटनायें, तो आये दिन कि घटनाओं से तंग आकर लोगों का आक्रोश फूट पड़ा | कस्बे में विरोध प्रदर्शन होने लगे | पुलिस के भी कान हुए | जनता को आश्वासन मिल गया कि बहुत जल्द बदमाशों के विरुद्ध आवश्यक करवाई कि जायेगी और उनका आतंक समाप्त करने के लिये शीघ्र ही प्रभावी क़दम उठाये जायेंगे |
आज जब टेढ़ीकोन पर एक शातिर बदमाश के एनकाउंटर का समाचार आया तो आस-पास के गांव व कस्बे के सभी लोग दौड़ दौड़ कर आये और वहां पर एकत्र हो गए | उन्ही में एक दुबला पतला कम्युनिस्ट नेता भी था जो अपनी आर्थिक और शारीरिक स्थिति से बेखबर अव्यवस्था और अन्याय के विरुद्ध अपना सीना तान कर प्रत्येक मामले में खड़ा हो जाता था | उसके अतिरिक्त कई अन्य पार्टियों के छोटे छोटे नेता एवं कई समाचार पत्रों के संवादाता भी पहुँच गए | संवादाताओं ने पहले तो उस मृत बदमाश के शव के कई कोणों से अपने डिजिटल कैमरों से फोटो निकाले फिर पुलिस पार्टी के साथ, और बाद में जब पुलिस वालों से वे लोग एनकाउंटर के संबंध में विस्तृत जानकारी एकत्र करने लगे, तो उसी समय भीड़ में से किसी ने धीरे से फुसफुसाया,”अरे ! यह तो पागल है, कई दिन से घूम रहा था |”
उसके बाद कई स्वर सुनाई दिए,”अरे, हाँ ! इसे तो हमने भी देखा था |” कोई कह रहा था कि मैंने इसे एक दिन रेलवे स्टेशन पर देखा था तो कोई कह रहा था,”मैंने बस स्टैंड पर देखा था |”
बस फिर क्या था इतना सुनते ही कामरेड ने स्पीच देना आरंभ कर दिया ،“कई रोज़ का था भूखा फुटपाथ पर पड़ा था, कुर्ता उठा के देखा तो पेट पर लिखा था तो सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा” और उसके बाद पुलिस के सामने अपनी मांग का ऐलान कर दिया कि जब तक कोई मजिस्ट्रेट आकर मुआइना नहीं कर लेगा , हम लाश को यहाँ से उठने नहीं देंगे | उसका साथ अन्य पार्टी नेता भी देने लगे |
पुलिस वाले जो पहले से इस पारिस्थित के लिये तैय्यार नहीं थे एकदम आई इस आफ़त से घबरा गए परन्तु शीघ्र ही उन्होंने सबको समझाने बुझाने का भरसक प्रयास किया | उन्होंने स्पष्टीकरण देते हुए कहा,” आप लोगों को गलत फ़हमी हो गई है……हमने कई घंटे मुकाबले के बाद इसे मार गिराया है………आप लोग अकारण बवाल मत काटो……..वरना समझ लो फिर हमसे बुरा कोई न होगा|”
“अच्छा ठीक है ! ……..आप मजिस्ट्रेट साहब को बुलाइये …….. शव उनके आने के बाद ही उठेगा |” कई लोगों ने एक साथ कहा |
“हाँ ! ऐसा ही होगा ………..हमने स्वंय ही मजिस्ट्रेट साहब को सूचना भेज दी है वह बस आते ही होंगे और साथ ही हमारे अन्य उच्च अधिकारी भी आ रहे ……..आप लोग विशवास कीजिए………यह एक बदमाश था जिसे पुलिस पार्टी ने बड़ी बहादुरी के साथ मार गिराया है इस के अन्य साथी अपनी जान बचाकर भाग गए हैं …….. और इस बात कि भी प्रबल संभावना है कि उनमें से एक दो घायल हुये होंगे |
“इसका नाम क्या है ? एक पार्टी के छुटभैया नेता ने पूछा |
“जर्मन! इंस्पेक्टर ने उत्तर दिया |”“जर्मन! एक दूसरी पार्टी के नेता ने बदमाश का नाम दोहराया |
“हाँ जर्मन ! पुलिस हेड कानिस्टेबल ने उसकी ओर मुंह करके अपनी बात पर बल दिया |
“यह कैसा नाम है ! ………. बदमाश हिन्दुस्तानी और नाम जर्मनी ! एक तीसरी पार्टी के नेता ने आश्चर्य प्रकट किया |
“हाँ, बदमाशों के ऐसे ही विलायती नाम होते हैं …….सालों के कई कई नाम होते हैं कोई एक थोड़े ही होता है जो तुम्हें सही सही नाम बता दें | हेड कांस्टेबल ने उत्तर दिया |
“और इसके बाप का नाम ? किसी ने भीड़ में से पूछा |
“क्या करोगे ? बाप दादा का नाम मालूम करके | हेड कांस्टेबल ने थोड़ा खीज कर कहा |
“तो बताने में क्या हर्ज है |” एक युवक ने मुस्कराकर पूछा |
“हिटलर ! पास खड़े दरोगा जी ने उस युवक को उत्तर दिया |
जब इसका नाम जर्मन है तो इस के बाप का नाम तो हिटलर तो होगा ही |”युवक ने मसखरे अंदाज़ में कहा, तो दरोगा जी ने उसे घूर कर देखा |
“जब सब जानते हो, तो क्यों पूछ रहे हो ? हेड कांस्टेबल ने प्रशन क्या |
“परन्तु इसकी जाति क्या है ? सफ़ेद किशतीनुमा टोपी लगाए एक नेताजी ने आगे बढ़कर प्रशन किया |
“जाति जानकर क्या करोगे ?”
“कुछ नहीं , बस ऐसे ही पूछ लिया |” प्रशन करने वाले ने बात बनाई |
“जाति पांति नेतागिरी में काम आती है , इसलिए पूछ रहे हो ना !”
“हाँ दीवानजी आप ठीक कह रहे हो |” एक समाजसेवी ने आगे बढ़कर कहते हुए प्रशन किया,”वैसे दीवानजी, यह है कहाँ का रहने वाला ?”
“अरे साहब, हम आपको क्या बताएँ………….इन साले बदमाशों कि ना तो कोई जाति होती है और ना कोई ठौर ठिकाना ……….ना खुद चैन से रहते हैं और ना हमें चैन से रहने देते हैं |”
उसी समय पुलिस के अन्य अधिकारी भी पहुंच गए और पुलिस वालों ने डंडे घुमाकर भीड़ को दूर हटा दिया, तभी मजिस्ट्रेट साहब अपने अमले के साथ पधारे और आते ही अपने पेशकार को निर्देशित किया |
“पेशकार साहब! बदमाश के शव और घटना स्थल के निरिक्षण का मीमो तैय्यार कर लो !”
“यस सर! कहते हुए पेशकार साहब शातिर बदमाश जर्मन के शव के पास गए, तभी एक ओर से उसी कामरेड ने चीख कर कहा ,”सर! यह बदमाश नहीं है, यह तो नंगा, भूखा कोई भिखारी या पागल है……..पुलिस ने फर्ज़ी एनकाउंटर दिखाया है……..इन पुलिस वालों के खिलाफ़ कारवाई कि जानी चाहिए, जिन्होने एक बेगुनाह भूखे ,प्यासे इंसान को एक टुकड़ा रोटी और एक बूंद पानी तो दिया नहीं , उल्टे उसके पेट में रायफिलों कि गर्म गर्म गोलियाँ उतार दीं | “
सी.ओ. साहब पास खड़े थे उसकी बातों से उनकी बर्दाश्त खत्म हो गई, उन्होंने आव देखा ना ताव, कालर पकड़ कर उस मानव पिंजर को ऊपर उठाया, तो वह उनके हाथ पकड़ कर लटक गया और अपनी आज़ादी के लिये संघर्ष करने लगा और जब वह अपनी इस कोशिष में कामयाब न हो सका तो एक मजबूर परिंदे के भांति छुटने के लिये छटपटाने लगा, परन्तु न तो वहाँ पर मौजूद लोगों की भीड़ में से उसकी किसी ने सहायता की और न ही उस पर किसी को दया आयी अपितु कई शक्तिशाली पुलिस वालों ने उसे अपने मज़बूत हाथों से जकड़ लिया और फिर पुलिस की एक गाड़ी में बड़ी बेरहमी से फेंक दिया, जहाँ गिरते ही वह बेहोश हो गया |
“इसे किसी ऐसे वीरान स्थान पर ले जाकर छोड़ दो, जहाँ से शाम तक वापस न आ पाए |” लम्बे चौड़े सी.ओ. साहब अपने मातहतों को आदेश देकर बड़बड़ाए, “बहुत बवाल मचाता है साला |”
“अभी लीजिए सर ! सिपाही ने सी.ओ. साहब को सैलूट मारा |
“सर, आप ! मजिस्ट्रेट साहब को संभालिये, तब तक मैं पेशकार साहब को शव और घटना स्थल का निरीक्षण करवाये देता हूँ ……….बाद में आवश्यकता होगी तो अपने कुछ लोगों का ब्यान भी दर्ज करवा दूँगा |” पुलिस इन्सपेक्टर सी.ओ. साहब के निकट आकर बहुत अदब से फुसफुसाए |
इस मध्य मजिस्ट्रेट साहब जीप से नीचे उतरे और टेढ़ीकोन के चारों ओर दृष्टि दौड़ा कर वहां के सुंदर दृश्य का जायज़ा लेने लगे ,”वाह! वास्तव में कितना सुंदर स्थान है यह!………कितनी फ़्रेश एयर है यहाँ पर !” वह बुदबुदाए और एक लम्बा श्वांस खींचकर अच्छी खासी ताज़ी आक्सीजन अपने फेफड़ों में भर ली, तभी उनकी द्दृष्टि अमरुद के बाग़ में लगे ताज़े अमरुदों पर जाकर टिक गई , “कितने अच्छे बड़े बड़े अमरुद लगे हैं |” उनके मुंह से इतना निकलना था कि सी.ओ. साहब ने सिपाही को आदेश दिया |
“जाओ, साहब के लिए अमरुद ले आओ !”
“अभी लाया सर ! कहते हुए एक सिपाही आगे बढ़ा |
“नहीं, मेरा मन तो करता है …….इन्हें स्वंय तोड़ कर खाया जाए |”
“तो चलें |”कहते हुए सी.ओ. साहब मजिस्ट्रेट साहब के साथ बातें करते हुए चल दिए |
उसी समय एक बूढा आदमी तीव्र गति से चलता हुआ उनकी ओर आया, तो सी.ओ. साहब ने उसे निकट आता देखकर पूछा ,”यह बाग़ किस का है ?”
“मेरा है साहब ! उसने अदब से जवाब दिया |
“देखो! साहब को तुम्हारे बाग़ के अमरुद बहुत अच्छे लाग रहे हैं……….ज़रा लाकर इनका टेस्ट करवाओ |”
“में अभी तोड़कर लाए देता हूँ साहब!”
“नहीं ,हम लोग स्वंय तोड़ लेंगे |” सी.ओ. साहब ने एक बड़ा सा अमरुद तोड़कर मजिस्ट्रेट साहब कि ओर बढ़ाते हुए कहा,”यहाँ के आम अमरुद बहुत स्वादिष्ट होते हैं |”
इस दरमियान एक के बाद एक कई अमरुद उस बूढ़े ने जल्दी जल्दी तोड़े और उन्हें अपनी झोली में रखकर पास लाया,” यह लीजिए साहब!…….यह बहुत मीठे हैं |”
मजिस्ट्रेट साहब ने एक अमरुद उसकी झोली से उठाया और बोले,” बस एक दो ही काफी हैं………आप इतने अमरुद क्यों तोड़ लाए ?”
“साहब, कुछ घर के लिए रख लीजिए, बच्चे भी खा लेंगे |”
“ठीक है |” सी.ओ. साहब ने जल्दी से एक सिपाहीको इशारा किया,” साहब की जीप में ले जाकर रख दो |”
“अरे हाँ! आप तो यहीं रहते हैं |” अचानक मजिस्ट्रेट साहब को जैसे कुछ याद आ गया ,” ज़रा यह तो बताइए! यह बदमाश कब से यहाँ पर छिपा था ……और आप तो इसे पहचानते भी होंगे |”
“नहीं साहब! मैंने आज से पहले इसे कभी नहीं देखा ………सुबह तड़के पहले जीप की आवाज़ सुनाई दी, फिर उसके कुछ देर बाद गोलियाँ चलने की आवाज़ आई……….मैं बाग़ से बाहर आया तो बहुत से पुलिस वाले खड़े थे उन्होंने मुझे बाग़ में जाने को कहा, बाद में मालूम हुआ कोई बड़ा बदमाश मारा गया है |”
“अरे ! …….ये बड़े मियां क्या जाने, शरीफ़ आदमी हैं |” सी.ओ. साहब बीच में ही उसकी बात काटकर बोले, तो मजिस्ट्रेट साहब ने सी.ओ. साहब की ओर अपनी गर्दन घुमा कर उनसे भी एक प्रशन पूछ लिया,”और हाँ, वह पतला दुबला माकडया सा आदमी क्या कह रहा था, पागल है, फ़कीर है मैं कुछ उसकी बात समझ नहीं सका |”
मजिस्ट्रेट साहब की बात सुनकर सी.ओ. साहब पहले तो खूब हँसे फिर बोले, अरे, वह तो एक पागल नेता है …….कहीं खड़ा कर दो बोलने लगेगा |”
“सही कहते हैं आप !……….नेता तो सभी पागल होते हैं………एक तो हम लोंगों को कोई काम नहीं करने देते, दूसरे जनता को भी पागल बनाए रहते हैं, हर समय सरकारी काम में अपना अनावश्यक हस्तक्षेप करने के आदी हो गये हैं…….खुद भी परेशान रहते हैं हमें भी अपने ढंग से काम नहीं करने देते है और जनता को भी झूठे सच्चे वायदे करके गुमराह करते रहते हैं |”
इधर दोनों उच्च अधिकारी आपस में ग़पशप कर रहे थे उधर पेशकार साहब घटना स्थल का निरीक्षण करते समय बोले,” इन्स्पेक्टर साहब!…….. इस बदमाश के बारे में आपने जो कुछ भी बताया, उसके बारे में तो मैं कुछ नहीं कह सकता, क्योंकि वह तो आप के थाने का रिकार्ड बताएगा, किन्तु मेरी एक बात समझ में नहीं आई कि जब पुलिस कि गोलियों से यह घायल हो गया तो अपनी बंदूक पर बड़े इत्मीनान से हाथ रख कर बड़े आराम से लम्बा लम्बा सड़क पर यह क्यों लेट गया |”
“पेशकार साहब!………बंदूक ही तो इनकी सब कुछ होती है …….उसे मरते दम तक नहीं छोड़ते हैं यह लोग !”
“दूसरी बात यह है इन्स्पेक्टर साहब ! यह बदमाशजो जो पुलिस की वर्दी पहने है वह उसके शरीर पर फिट नहीं है …….देख रहे हैं इसकी टागें खुली हैं और कमर तक भी पैंट नहीं पहुँच रही है, देखिये ! फिलाई की चैन भी खुली है जिससे उसका शरीर देख कर शर्म आरही है ………ऐसा लगता है इसकी चैन ख़राब है |”
“अब क्या बताऊं पेशकार साहब! सिपाहियों का काम तो ऐसा ही होता है ……….. पेशकार साहब भविष्य के लिए चेतावनी दे दूँगा ………. एनकाउंटर के मामले में पूरी सावधानी बरता करें, किसी प्रकार कि लापरवाही बर्दाश्त नहीं कि जायगी |”
थोड़ी देर में ही मजिस्ट्रेट साहब कि जीप का हार्न बजा और पेशकार साहब अपने सरकारी कागजात संभालते हुए तेज़ तेज़ क़दमों से उस ओर चले गए, जहां मजिस्ट्रेट साहब जीप में बैठे हुए उनके आने कि प्रतीक्षा कर रहे थे | उनके जाते ही पुलिसवालों ने बदमाश का शव सील कर पंचनामा भरा और पोस्ट-मार्टम के लिए भेज दिया और लोग तरह तरह कि बातें करते हुए अपने अपने घरों की ओर लौटने लगे | उन्ही में से कुछ महिलाएं आपस में बात चीत कर रही थीं |
“जिजी! मोहे का मालूम थो जे इतनो बडो बदमास है ……मैने स्वयं जाको बस स्टेंड पर बादिन देखो हथो और जाको पूडियां भी दई थीं खान के लय बहुत भूखा लग रहो हथो |”
“ बदमास बहरूपिया होत हैं…….साधू, सन्यासी, भीखारी, किसाऊ को रूप धर लेत हैं |” दूसरी बोली |
“और पागलउ बन जात हैं|…….तीसरी ने भी दोनों की हाँ में हाँ मिलाई |
कुछ दिनों बाद टेढ़ीकोन एनकाउंटर से संबंधित पुलिस पार्टी को पुरुस्कारों की घोषणा सरकार व्दारा की गई और आज समाचार पत्र में उन सभी लोगों के नाम की सूची फोटो सहित प्रकाशित हुई थी जिन्हें मैं बैठा पढ़ व देख रहा था इंसेट में जर्मन डकैत का भी फोटो छपा था | उसी समय एक फटेहाल बूढ़ी महिला मेरे कार्यालय में आई |
“बाबू जी ! लोग कहते हैं आप सब की खबर रखते हैं……….मेरा भी बेटा खो गया है…….क्या आप मुझे बता देंगे कि वह कहाँ मिलेगा ?”
“अरे वाह ! मैं कैसे बता सकता हूँ कि आपका बेटा कहाँ मिलेगा ?”
“क्यों?……क्या आप अखबार वाले बाबू जी नहीं हैं ?”
“हाँ ! अखबार वाला तो हूँ …….किन्तु मैं क्या जानू आप कौन हैं?…..आपका बेटा कौन है, वह क्या करता है?”
बाबू जी, मैं सब बताती हूँ ……..बस आप मेरे लाल को मुझसे मिलवा दीजिए |” कहती हुई वह थकी थकी वहीं फर्श पर बैठ गई |
मैंने कहा ,”कुर्सी पर बैठ कर बताओ |”
उसने कहा,”नहीं मैं यहीं पर ठीक हूँ |”
“बाबू जी ! वह थोड़ा रुककर बोली,”मेरी एक जवान खूबसूरत बेटी थी जिसकी इज्ज़त गांव के कुछ दबंगों के लड़कों ने मिलकर लूट ली थी और उसने लोक लाज के कारण फांसी लगाकर मौत को गले लगा लिया और मेरा बेटा इस ग़म में पागल हो गया ………..जानते हो बाबू जी ! पिछले छ: महीने से मैं उसे तलाश कर रही हूँ लेकिन वह कहीं मिलता ही नहीं |” कहकर वह उदास हो गई |
“आपके बेटे का नाम किया है?……….उस की उम्र क्या है, वह कैसा दिखता है ……..कुछ बता सकेंगी आप ?” मैंने कई प्रशन एक साथ कर दिए तो वह जल्दी से बोली |
“हाँ ! हाँ ! क्यों नही, वह भी बताती हूँ ……उसका नाम रामू है और बस वह तुम्हारी उम्र का होगा और हाँ ! मेरे पास उसकी एक फोटो भी है |” उसने झट से अपनी गन्दी सी पोटली खोली और उसमें कुछ ढूँढने लगी |
“यह लीजिए बाबू जी !” उसने एक मैली कुचैली मुडी तुड़ी फोटो मेरे हाथ में थमा दी |
“यह आपका बेटा है !……मैंने गौर से फोटो देखते हुए चौंक कर पूछा |”
“हाँ बाबू जी ! लगता है आपने इसे कहीं देखा है ………जल्दी बताइए बाबू जी, मैं उससे मिलने के लिये तड़प रही हूँ बहुत दिनों से मैंने उसे नहीं देखा है मेरी ऑंखें पथरा गयीं है उसके इन्तेज़ार में |” कह कर वह फफक पड़ी |
उसके प्रशन और उसकी ऐसी हालत देखकर मैं परेशान हो गया, साथ ही अपने अंदर एक अजीब सी हलचल व बेचैनी महसूस करने लगा, फिर स्वयं को संभालते हुए मैंने उससे कहा, “नहीं ! मैंने इसे कहीं नहीं देखा है |” कहते हुए मैं जल्दी से उठा और फ़ोटो उसके हाथ में थमाकर बाहर की ओर चल दिया, अब मैं यह बात उसे कैसे बताता कि तेरे बेटे कि फोटो कुछ दिनों पहले टेढ़ीकोन एनकाउंटर में मारे गए जर्मन बदमाश से हूबहू मिलती जुलती है |
आले हसन खां, क़ायमगंज, भारत