क़ानूनी हथौड़ा

Qanooni-Hathorha

क़ानूनी हथौड़ा

“तुम्हें उम्र क़ैद बा मशक्कत सुनाई जाती है|” न्यायाधीश के ये वह शब्द थे जो अब तक राजा के कानों में बार बार गूंज रहे थे उसके बाद उसे कुछ भी याद नहीं रहा कि उसे कब हथकड़ी लगा कर कारागार में लाया गया|

एक कम्बल ओढने और एक बिछाने को, एक प्याला पानी पीने को और एक थाली खाना खाने को जब उसको दी गई तो उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी| वह जो अपने मित्रों के साथ लग्ज़री गाड़ी से शहर की आवारा सड़कों के चिकने सीनों पर दिन रात मस्ती किया करता था, करोड़ों के फ्लैट में डनलप पिलो पर बेफिक्री की नींद सोता था, आज फर्श पर सोने को मजबूर कर दिया गया था| कल से उसे एक साधारण व्यक्ति की तरह ही दिनभर कठोर मेहनत भी करना थी जिसकी उसे एक मज़दूर की भांति ही मज़दूरी मिलना थी, यह सोच कर उसकी आँखों से नींद कोसों दूर भाग चुकी थी| उसको अपने पिता के प्रभाव और रुतबे पर इतना गर्व था कि वह जो मन में आता कर डालता था, वह उस घर का लाडला था जहाँ प्रत्येक वस्तु का मूल्य केवल धन से तौला जाता था| उसे किसी का भय नहीं था और इसी आदत ने उसे आज इस अंजाम तक पहुंचा दिया था वह जिस वस्तु को चाहता उसे प्राप्त करके ही छोड़ता था उसके लिये यह असहनीय था कि राधा जैसी एक ग़रीब परिवार की लड़की उसके जैसे वैभवशाली घराने के लड़के की गर्ल फ्रंड बनने के प्रस्ताव को अस्वीकार करने का साहस करे और क्रोध में अंधे हो कर उसने उसका अपहरण कर उसके शील भंग करने का असफ़ल प्रयास किया, जिसकी रक्षा के लिये उस कोमलांगी ने अपनी जान की आहुति दे डाली, जिसका एक अव्दितीय सुंदरी होना अभिशाप था| राधा का बलिदान रंग लाया, इस जघन्य अपराध के विरुद्ध समाज उठ खड़ा हुआ, आंदोलन हुआ, राजा के परिवार का असर रसूख कुछ काम न आया और देखते ही देखते उसे पुलिस ने सलाखों के पीछे पहुंचा दिया|

“चलो! तुमसे कोई ज्ञान सिंह नाम के वकील साहब मिलने आये हैं|” सुनते ही उसे अपने मित्र की बात याद आगई|

“देखो राजा! तुम क़ानून तोड़ने की आदत छोड़ दो वरना किसी दिन बहुत पछताओगे, हमारे प्रोफ़ेसर साहब कहते थे कानून के सामने सभी बौने होते हैं उसको कभी मत तोड़ना वरना कानून का हथौड़ा तुम्हारे सर पर एक दिन ज़रूर पड़ेगा|” वह सुनता और बड़े बड़े ठहाके लगा कर कहता, “क़ानून गरीबों के लिये बनते हैं हम जैसे रईसों के लिये नहीं…हम क़ानून से नहीं डरते हैं क़ानून तो हमारी जेब में रहता है|”

किन्तु

कारागार की एक ही रात ने उसे कानून की शक्ति और महत्व बहुत सरलता से समझा दिया था, जिसका वह कभी मज़ाक़ उड़ाया करता था|

“काश! राधा को पाने के लिये मैंने मूर्खता न दिखाई होती, तो आज ये दिन न देखना पड़ता और न ही क़ानूनी हथौड़े की मार मुझपर पड़ती|” कहते हुए अपने मित्र ज्ञान के समक्ष वह किसी बच्चे की भांति फफक पड़ा|

लेखक- आले हसन खां, क़ायमगंज, भारत।