(प्रकाशित अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका “प्रयास” अक्टूबर २०१४)
लोगों में भेदों –भाव का झगड़ा मिटाइये,
हो आदमी तो आदमी के काम आइये ||
इंसान बनके खुद को पहले दिखाइये,
तब उसके बाद मस्जिदो मंदिर बनाइये ||
इस जात पांति धर्म के बंधन को तोड़कर,
होकर के एक देश का गौरव बढाइये ||
हम है तिरंगी लोग फिरंगी भी जानते,
सब मिलके इस तिरंगे को ऊँचा उठाइये ||
गुरबत का ये अँधेरा है अब बस्तियों में क्यों,
इनमें चराग़-ए-इल्म की दौलत लुटाइये ||
माना के मुश्किलें हैं तो आसानियाँ भी हैं,
उम्मीद की किरन से दिल जगमगाइये ||
आज़ादी हमने पाई है सब कुछ लुटाके आज,
अब राष्ट्र गीत गाइये और मुस्कुराइये ||
ग़म दूर होगा पाओगे एक दम से ताज़गी,
रहबर का कोई गीत गज़ल गुनगुनाइये ||
ज़िंदा दिली से जीने का एक राज़ दूं बता,
मस्ती में रहना है तो ज़रा मुस्कुराइये ||
आले हसन ख़ाँ (रहबर)