जहालत


जहालत (लघुकथा)

टी वी के प्रत्येक चेनल पर आज बस एक ही ब्रेकिंग न्यूज़ लगातार चल रही थी कोरोना संदिग्ध की घर पर जांच करने गई मेडिकल टीम पर पथराव, मेडिकल टीम के सदस्य ज़ख़्मी एम्बोलेंस और सरकारी गाड़ियों में तोड़फ़ोड़, एक डाक्टर की हालत गंभीर ।

“हैलो! बेटा दो दिन हो गए हैं …अब तो घर आ जाओ।”

“अम्मी! परेशान न हों ….मैं यहां अकेली नहीं हूं मेरे साथ अस्पताल का पूरा अमला है और आप तो जानती हैं आजकल कोरोना की वजह से मेडिकल स्टाफ़ की कितनी अहमियत है, आखि़र लोगों की जान बचाने का सवाल है।”

“वह तो ठीक है बेटा !लेकिन तुम्हारी अपनी भी जान है यहां घर पर सबको तुम्हारी फ़िक्र सताती रहती है।”

“अम्मी जान ! आप फ़िक्र न करें ….. एक डाक्टर के लिए दिन और रात सब बराबर होते हैं और हां अम्मीजान! मैं एक बात तो आपको बताना भूल ही गई।”

“वह क्या ?”

“अम्मीजान! हुआ ये कि कल मेरा एक कोविड19 के बीमार से पाला पड़ गया । हम लोगों को ऐसे बीमार के कमरे में जाने से पहले सुरक्षा उपाय करना पड़ते हैं सुरक्षा कवच, दस्ताने, मास्क वगैरह लेकिन उसके बावजूद मेरा दिल धकधक कर रहा था तबियत में अजीब सी बैचैनी थी फिर भी एक डाक्टर का जो फ़र्ज़ है वह मैं ने बख़ूबी पूरा किया ।”

“शाबाश बेटा! लेकिन उसके साथ अपना भी ख्याल रखा करो ।”

“अम्मी! इस महामारी से इंसानी जानो को बचाने में हमारे सब स्टाफ़ को बहुत ख़ुशी मिलती है…और हां! अब कल से हमारी मेडिकल टीम संदिग्ध लोगों की घर घर जाकर जांच करेगी । उसके बाद मैं आती हूं।”

“हां बेटा! जल्दी आना तेरी मां तेरा इंतज़ार करेगी और तेरी मनपसंद चीज़े बनाकर रखेगी।”

इंतज़ार ख़त्म हुआ, डाक्टर आरफ़ा का शव घर के आंगन में रखा था जिसके सामने डाक्टर की अम्मी फ़ातिमा बीबी गुमसुम बैठी थीं खालाजान ने आते ही दहाड़ें मारना शुरू कर दिया और रोते हुए कहने लगीं “हाय! मेरी बच्ची को कोरोना खा गया।”

“नहीं! कहती हुई फ़ात्मा बीबी बहुत ज़ोर से चीख़ीं, “मेरी बेटी को कोरोना नहीं जहालत खा गई ।”

लेखक- आले हसन खां, क़ायमगंज, भारत।

समाप्त