“बच्चो! आज तुम लोगों की छुट्टी ।” अचानक मौलवी साहब ने कहा तो सब शार्गिद चौंक पड़े, किन्तु मल्लू ने जिज्ञासावश पूछा “ मौली साब! आज छुट्टी क्यूं करदी ?” “अरे!आज शाम को मुशायरा है तुम सब सुनने चौक में आ जाना और जब मैं शेर पढ़ूं तो वाह! वाह!! भी करना।”
दूसरे दिन मौलवी साहब ने मल्लू को पकड़ा, “अबे मलाऊन! तुझसे इतनी वाह! वाह!! करने के लिए किसने कहा था….एक तो तू ठीक मेरे सामने बैठ गया…..ऊपर से इतनी वाह वाह की, कि शेर पढ़ना ही मुश्किल हो गया….कमबख़्त मेरे पढ़ने से पहले ही वाह वाह शुरू कर देता… तूने तो मुझे परेशान कर दिया।”
आज जब भी मैं फ़ेस बुक पर किसी की मृत्यु के समाचार के साथ ही सौकड़ों लाइक देखता हूं तो मुझे मल्लू जैसे नादान दोस्त की बहुत याद आती है ।
– आले हसन खां (रहबर) क़ायमगंज, भारत।