हर भारती के दिल में जिसके लिए है प्यार |
हर साल जिसका रहता है हम सबको इन्तेज़ार ||
वो आ गई है देखो छब्बीस जनवरी |
कुछ ग़म है उसके दिल में कुछ तो है बेकली ||
ज़ख्मों से चूर दिखती है कश्मीर की कली |
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||
सजधज के यूँतो आई है छब्बीस जनवरी,
पैरों में जिसके बेड़ियाँ हाथों में हथकड़ी,
और आँखों से लगी है बरसात की झड़ी,
उसपर भी मुस्कुराई है जैसे हो फुलझड़ी,
कुछ बदली बदली आई है छब्बीस जनवरी,
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||
संसद से मारपीट का अब आता शोर है,
अपराध की सुनामी लहर का न तोड़ है,
है क़त्ल आम बात तो अगवा का ज़ोर है,
रहज़न डकैत कोई है तो कोई चोर है,
कुछ बेज़मीर देश की करते हें मुखबरी,
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||
हक़ बहनों बेटियों को भी देते नही हें हम,
बहुएँ जलें तो होता नहीं हम को कोई ग़म,
मुल्ज़िम हमें बनाएगा है किसमें इतनी दम;
पापी तो हम सभी हैं कोई नही है कम,
आज़ादी हमने पाई है करने को तस्करी,
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||
गणतन्त्र की हुकूमत दिखती नही कहीं,
क्या अपने संविधान में कुछ रह गई कमी,
जम्हूरियत का ये गुल ऐसे खिला नहीं,
ये लोकतंत्र हमको यूँ ही मिला नहीं,
कुर्बानियों से पाई है मुश्किल से ये घडी,
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||
ऐ नौजवानों देश को आगे बढ़ाओ तुम,
बापू के जैसा रहबर अपना बनाओ तुम,
दस्तूरे हिंद सर पर अपने उठाओ तुम,
अस्मत तिरंगे झंडे की अब तो बचाओ तुम,
तोड़ो इन बेड़ियों को खोलो ये हथकड़ी,
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||
-आले हसन ख़ाँ (रहबर)
(प्रकाशित “प्रयास मैगज़ीन”, कनाडा, दिसम्बर २०१४)