अजब छाई हुई अहले वतन पर आज गफ़लत है |
हवालों और घुटालों से इन्हें मिलती न फुर्सत है ||
न इनको है कोई परवाह वतन मादर की अस्मत की |
शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||
कभी मज़हब और मिल्लत पर भिड़ा करते हें शोहरत है |
अहिंसा धर्म है इनका लड़ा करते हैं हैरत है ||
न इनको याद है ज़िल्लत वो रुसवाई गुलामी की |
शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||
सभी ज़ुल्मो सितम सहना पुरानी इनकी आदत है |
जिधर देखो उधर फैली यहाँ पर आज दहशत है ||
तुम्हारी याद ऐसे में हमें शिद्दत से है आती |
शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||
तुम्हारे नाम से मिलती जहां में इनको इज्ज़त है |
तुम्हारी सरफरोशी ने ही बख्शी इनको अज़मत है ||
मिटाना है तुम्हें अब इनमें बढ़ते इख्तिलाफों को |
शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||
दिलाई थी जो आज़ादी उसी की आज बरकत है |
इन्हें अशफ़ाक बिस्मिल की न अब तो याद उल्फ़त है ||
दुहाई दे रहा रहबर तुम्हें कब से यकीन जानो |
शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||
आले हसन ख़ाँ (रहबर)