(प्रकाशित हिंदी कहानी “दैनिक जागरण पुनर्नवा”, ५ जनवरी २००७)
वर्षा ऋतु, नीचे पानी ही पानी, ऊपर कड़ाके की धूप जिसमें एक क्षण भी खडे रह पाना कठिन था किन्तु प्राकृतिक परिधान में एक बूढ़ा जर्जर शरीर खुले आसमान के नीचे उकड़ूं बैठा आने जाने वालों के लिये कौतूहल का विषय बना हुआ था। सभी को इस खराब मौसम में अपने-अपने गंतव्य तक पहुंचने की इतनी जल्दी थी कि किसी को उसका कष्ट जानने अथवा सहायता करने के लिये समय ही नहीं था परन्तु वह अभागा फिर भी बहुत भाग्यशाली था जो कर्मठ युवा नगर मजिस्ट्रेट नगर के जल भराव समस्या का निरीक्षण करते हुए उधर आ नकले और जैसे ही उनकी दृष्टि उस जीवित मानस कंकाल पर पड़ी, उनकी जीप एक झटके के साथ रुक गई। उन्होंने तुरंत अपने अर्दली को भेज कर मालूम करवाया कि वह बूढा ऐसी हालत में फुटपाथ के सहारे पानी भरे रिक्त स्थान में क्यों बैठा है?
सर! यह बूढा यहां पर आज कई दिन से बैठा है। अर्दली नें वापस आकर साहब को बताया ।
क्यों?
यह तो नहीं पूछा सर!
बेवकूफ!..आधी अधूर बात पूछ कर आए।
मैं जाता हूं सर! कहते हुए स्टेनो बाबू शीघ्रता से जीप से उतरे और वहां पर उपस्थित लोगों से जानकारी करके वापस आए, सर! यह बूढा न सुन पाता है और न ही कुछ बोल पाता है.. इसलिए उसके बारे में कोई ख़ास जानकारी नहीं हो पाई है.. हां, आस-पास के लोगों से बस इतना मालूम हो सका है कि यह कई दिन से यहां पर है.. सडक से गुजरने वालों में से कुछ दयालु इसको खाने-पीने को कुछ डाल देते हैं..परंतु वह खाता पीता नहीं है ।
क्या चलता फिररता भी नहीं है?
यह तो पूछा नहीं सर! स्टेनो बाबू अपने साहब के प्रश्न पर घबरा गए, सर! अभी जानकारी करके आता हूं।
रहने दीजिये स्टेनो बाबू! नगर मजिस्ट्रेट मुस्कुराए और स्वयं जीप से उतर कर उस बूढ़े के पास गए, तो आस-पास खड़े लोग भी निकट आ गए, जो आपस में खुसर-फुसर करने लगे। नगर मजिस्ट्रेट की दृष्टि उस बूढ़े की ओर और कान भीड़ से आने वाली आवाज़ो की ओर लगे थे।
-परसों इस बूढ़े को दो लड़के यहां पर छोड़ गए थे।
-कौन थे वे लोग… और इस बेचारे को इस हालत में क्यों छोड़ गए?
-इस बूढ़े के नालायक़ बेटे होंगें… और कौन होंगें… अपना पीछा छुड़ाकर भाग गए!
-तुम ठीक कहते हो भाई! एक ने दूसरे से सहमति जताई, यह बात कोई और भी कह रहा था।
-कितने निर्दयी होते हैं ऐसे परिवार वाले, जो समय किसी बुज़ुर्ग की देख रेख का होता है उस समय उसका यूं तिरस्कार कर देना कितना बड़ा पाप है…कितने पापी होते हैं ऐसे लोग!
-पापी!… अरे पापी तो यह स्वयं हैं जो अपने पूर्व जन्म के पाप भुगत रहे हैं।
-कोई उस बूढ़े को पहचानता है? नगर मजिस्ट्रेट साहब ने भीड़ की ओर मुंह उठाकर पूछा, परन्तु किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया, आशचर्य है! आप लोग इस बूढ़े को नहीं पहचानते, परन्तु इसके पूर्व जन्म के पाप जानते हैं। इतना सुनते ही भीड़ को सांप सूंघ गया। भीड़ में छाई ख़ामोशी देख कर वह
फिर बोले, यदि आप इसका अता पता अथवा इसके परिवार वालों के सम्बन्ध में वास्तव में जानते हैं तो कृपया बतायें? इस प्रश्न का भी किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया। हां भीड़ में से किसी ने पीछे से आवाज लगाई।
लावारिस है।
लावारिस है… हां! हां! लावारिस है। फिर एक साथ कई स्वर वातावरण में गूंजे, जिसे सुनते ही नगर मजिस्ट्रेट ने अपने स्टेनो को आदेश दिया।
स्टेनो बाबू, फौरन ई. ओ. नगर पालिका परिषद से कहो कि वह अपने कर्मचारियों की सहायता से इस बूढ़े को अभी हमारे सामने उठवाकर अस्पताल में भरती करवाएं… देख रहे हो इसकी कितनी दयनीय हालत है।
परन्तु सर! स्टेनो बाबू ने परेशान होकर अपना सर खुजलाया।
परन्तु क्या?
परन्तु सर! यह तो लावारिस है। स्टेनो बाबू ने डरते-डरते अंतत: अपना वाक्य पूरा किया।
तो क्या हुआ? नगर मजिस्ट्रेट ने बहुत सहज भाव से अपने स्टेनो की ओर ध्यानपूर्वक देख कर पूछा।
सर, इस लावारिस का अस्पताल का ख़र्च कौन उठाएगा? स्टेनो बाबू ने अपनी आशंका प्रकट की।
स्टेनो बाबू!… क्या आपको मालूम नहीं, जिस वस्तु का कोई वारिस नहीं होता है उसकी वारिस और स्वामी सरकार होती है।
यह तो मालूम है सर!
तो फिर इस लावारिस निर्वस्त्र बूढ़े शरीर का वारिस कौन हुआ?
जी सरकार हुई।
और सरकारी सम्पत्ति की देख रेख का उत्तरदायित्व किसका है? बड़े ध्यान से स्टेनो बाबू की ओर निहारते हुए नगर मजिस्ट्रेट ने प्रश्न किया तो स्टेनो बाबू सिटपिटा गए।
सर हमारा!
अब समझे! नगर मजिस्ट्रेट साहब के अधरों पर हल्की मुस्कान दिखायी दी।
जी समझ गया… सब समझ गया। स्टेनो बाबू ने अपना सर हिलाया, मैं अभी ई. ओ. साहब को आपके आदेश की सूचना देता हूं।
फिर देखते ही देखते नगर पालिका परिषद के कर्मचारी आंधी तूफ़ान की भांति आए और उस बूढे को उठा कर चल दिए। अस्पताल में भी उसके आगमन की सूचना पहले ही पहुंच चुकी थी क्योंकि नगर मजिस्ट्रेट का आदेश वहां भी पहुंच गया था और वहां की तैयारियां देखकर ऐसा लगता था जैसे कोई वी.आई. पी. इलाज के लिए तशरीफ लाने वाला हो।
आगे-आगे नगर मजिस्ट्रेट की गाड़ी सायरन बजाती हुई और पीछे-पीछे नगर पालिका परिषद की एम्बुलेंस उस मरीज़ को लेकर अस्पताल परिसर में दाख़िल हुई, तो ख़ूबसूरत नर्सों का झुंड उस गंदे जर्जर बूढ़े शरीर में चलती श्वांस की अगवानी के लिये आगे बढ़ा, जिससे एक क्षण के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी राजा के स्वागत के लिये ढेरों चंद्रमुखी सेविकायें आगे बढ़ आई हों।
कुछ समय पश्चात जब अस्पताल के स्टाफ ने उसको नहला धुला कर एक साफ सुथरे बिस्तर पर सफ़ेद कपड़े पहना कर लिटाया, तो वह शाही मेहमान से कम नज़र नहीं आ रहा था जब उसको आवश्यक दवायें ग्लूकोज़ के साथ चढाई गयीं तो बदतर दिखने वाला वही बूढ़ा अब अच्छा ख़ासा बुज़ुर्ग इंसान दिखने लगा था।
सायं को जब नगर मजिस्ट्रेट अपने मरीज़ की ख़बर लेने दोबारा अस्पताल भ्रमण करने आए, तो उसके पास बैठ कर बड़े प्यार से उसका हाल चाल पूछने लगे। उन्होंने बहुत प्रयास किया कि उसके अथवा उसके परिवार के बारे में कोई जानकारी मिल जाए परन्तु वह तो सदैव के लिए अपने बोलने की शक्ति खो चुका था इसलिए उनके किसी भी प्रश्न का उत्तर देने मे असमर्थ था। वह तो बस उनकी ओर एकटक देखे जा रहा था और अपनी आंखों से लगातार आंसू बहा रहा था। संभवत: यह उसकी पीड़ा थी जो उसकी आखों से आंसू बन कर बाहर आ रही थी अथवा कृतज्ञता के आंसू, जो नगर मजिस्ट्रेट का आभार प्रकट कर रहे थे।
दूसरे दिन जब नगर मजिस्ट्रेट अपने बंगले के बाहर बरामदे में बैठकर ठण्डी हवाओं के साथ गर्म चाय की चुस्कियों का आनंद ले रहे थे उसी समय चपरासी ने समाचार पत्र मेज़ पर ला कर रख दिया, तो उन्होंने चाय का कप मेज़ पर रख दिया और समाचार पत्र हाथ में उठा लिया। उनकी दृष्टि समाचार पत्र की उस हेडलाइन पर टिक गई जहां लावारिस बूढ़े की देखभाल और अस्पताल पहुंचाने की कल की घटना का विस्तृत विवरण प्रकाशित हुआ था और लिखा था काश हमारे देश के सभी अधिकारी अपने कर्तव्य एवं दायित्व का इसी प्रकार निष्ठापूर्वक और पूर्ण लगन से निर्वहन करें जैसा कि हमारे नगर के नगर मजिस्ट्रेट उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं तो आम लोगों की दिन प्रतिदिन बढती हुई समस्याओं पर एकदम अंकुश लगाया जा सकता है और ठीक उसी के नीचे दूसरा समाचार छपा था जिसमें लिखा था कि शासन द्वारा नगर मजिस्ट्रेट का स्थानान्तरण दो माह के अन्दर ही दूसरे ज़िले कि लिए तात्कालिक प्रभाव से कर दिया गया है।
यह लीजिए सर! कहते हुए चपरासी ने उनकी ओर एक लिफ़ाफ़ा बढ़ाया। चपरासी के हाथ से लिफ़ाफ़ा लेकर नगर मजिस्ट्रेट ने उसे खोला और अपने ट्रान्सफर आदेश को पढ़ कर आहिस्ता से मेज़ पर रख दिया फ़िर आंखें बंद करके कुछ सोचने लगे।
उसके दूसरे दिन प्रातः दो गाडियां नगर से एक ही समय में निकलीं। एक टैक्सी सरकारी बंगले से, जिसमें नगर मजिस्ट्रेट सपरिवार सवार थे और दूसरी नगर पालिका परिषद की कचरा ढोने वाली गाड़ी अस्पताल परिसर से, जिसमे उसी लावारिस बूढ़े का शव पड़ा था जो दो दिन से शाही मेहमान बनकर अस्पताल वालों का सरदर्द बना हुआ था।
आले हसन ख़ाँ (रहबर)