सरकारी काम होते हैं डंके की चोब पर ।
रिश्वत भी अब तो लेते हैं डंके की चोब पर ।।
बिन पैसे के रिपोर्ट न देता है लेखपाल ।
ख़ुद को समझता वो है गाँव का राजपाल ।।
क़ानूनगो भी रखता ऊँचा मुक़ाम है ।
जबतक न रक्खो हाथ पर करता न काम है ।।
और तहसीलदार अपना ह्क़ छोड़ता नही ।
उसपर ज़िले का हाकिम कुछ बोलता नहीं ।।
सब काम यहाँ होते हैं डंके की चोब पर ।
अरे! ज़िन्दा को मुर्दा लिखते हैं डंके की चोब पर ।।
सरकारी काम होते हैं डंके की चोब पर ।
रिश्वत भी अब तो लेते हैं डंके की चोब पर ।।
तहसील के दिवस पर आते यहाँ सभी ।
डी.एम. कभी कभी तो एस. पी. कभी ।।
आते हैं सी.डि.ओ. भी और ए.डि.एम. जी ।
फिर भी शिकायतों में होती नहीं कमी ।।
तहसील के दिवस की बातें बड़ी बड़ी ।
अरे! जनता दिवस शिकायतें आज तक पड़ीं ।।
जनता तो रोज़ लुटती है डंके की चोब पर ।
फिर थाने जाके कुटती है डंके की चोब पर
सरकारी काम होते हैं डंके की चोब पर ।
रिश्वत भी अब तो लेते हैं डंके की चोब पर ।।
है अस्पताल अपना कुछ पाक साफ सा ।
जिसमें दवाइयों का मिलता नहीं पता ।।
इंजेक्शन रेबीज़ के मिलते हैं अब कहाँ ।
और दल्ले हर विभाग में काटें यहाँ वहाँ ।।
मजबूर ज़िन्दगी की जो अस्मत से खेलता ।
वोह डाक्टर है आज का कलजुगी देवता ।।
अरे! अंगों से मसखरी भी डंके की चोब पर ।
और अंगों की तस्करी भी डंके की चोब पर ।।
सरकारी काम होते हैं डंके की चोब पर ।
रिश्वत भी अब तो लेते हैं डंके की चोब पर ।।
भारत को जो दिखाए कोई दिशा नई ।
रहबर हमें तो ऐसा दिखता नहीं कोई ।।
हैं बशऊर जो भी वो भी डरे हुए ।
अपनी मुसीबतों में वो भी घिरे हुए ।।
इन्साफ का तराज़ू रक्खा है जहाँ पर ।
रिश्वत का घुन तो देखो पहुँचा है वहाँ पर ।।
अरे! मुल्ज़िम भी छूट जाते हैं डंके की चोब पर ।
और मुढ़भेड़ें फर्ज़ी होती हैं डंके की चोब पर ।
सरकारी काम होते हैं डंके की चोब पर ।
रिश्वत भी अब तो लेते हैं डंके की चोब पर ।।
आले हसन ख़ाँ (रहबर)