आओ सहेलियो (गीत)

आओ सहेलियो आओ सहेलियो ,
मिलकर के आज नाचो गाओ सहेलियो ||

भाई को आज हम तो उबटन लगायेंगे,
चंदन से उसके तन में खुशबू बसायेंगे,
प्यारा उसको हमसब दूल्हा बनाएंगे |||

आओ सहेलियो…………….,
आओ सहेलियो……………||

मम्मी का है दुलारा पापा को प्यारा है,
बहनों का अपनी वह तो आँखों का तारा है ,
सारे जहां से अच्छा भाई हमारा है |||

आओ सहेलियो……………….,
आओ सहेलियो……………….||

किरणों के रथ पे उसको जब हम बिठायेंगे,
अर्धांगिनी को लेने तब घर से जायेंगे,
धरती गगन भी उस पल मल्हार गायेंगे |||

आओ सहेलियो आओ सहेलियो
मिलकर के आज नाचो गाओ सहेलियो

भाभी साथ लेकर जब भी वो आयेंगे,
प्रतीक्षा में अपनी बह्नों को पायेंगे,
फिर नेग देके अपना दामन छुडाएंगे |||

आओ सहेलियो आओ सहेलियो,
मिलकर के आज नाचो गाओ सहेलियो ||

आले हसन ख़ाँ (रहबर)

तू हमारी बहन और (गीत)

तू हमारी बहन और सहेली भी है ,
एक अनबूझ अदभुत पहेली भी है |

भोली चितवन में तेरी एक बांकपन,
चंदन काया में रखती है तू साफ़ मन |
और अधरों पे तेरी जो मुस्कान है ,
सुंदर मुखड़े की तेरी वो पहचान है ||

तू हमारी बहन और सहेली भी है ,
एक अनबूझ अदभुत पहेली भी है |

हाथों पैरों में मेंहदी लगाकर तुझे,
प्यारी दुल्हन बनादें सजाकर तुझे,
चाँद तारे लगा दें  तेरी मांग में ,
भावी सपने सजादें तेरी आँख में ,

तू हमारी बहन और सहेली भी है
एक अनबूझ अदभुत पहेली भी है |

आज कैसी लगी है ये देखो लगन,
झूमती है धरा और गाता गगन,
वाटिका का हमारी तू है एक सुमन,
तुझसे बिछड़े तो होती है दिल को चुभन,

तू हमारी बहन और सहेली भी है ,
एक अनबूझ अदभुत पहेली भी है |

आले हसन ख़ाँ (रहबर)

फिर देखो आज आई है (नज़्म)

हर भारती के दिल में जिसके लिए है प्यार |
हर साल जिसका रहता है हम सबको इन्तेज़ार ||
वो आ गई है देखो छब्बीस जनवरी |
कुछ ग़म है उसके दिल में कुछ तो है बेकली ||
ज़ख्मों से चूर दिखती है कश्मीर की कली |
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||

सजधज के यूँतो आई है छब्बीस जनवरी,
पैरों में जिसके बेड़ियाँ हाथों में हथकड़ी,
और आँखों से लगी है बरसात की झड़ी,
उसपर भी मुस्कुराई है जैसे हो फुलझड़ी,
कुछ बदली बदली आई है छब्बीस जनवरी,
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||

संसद से मारपीट का अब आता शोर है,
अपराध की सुनामी लहर का न तोड़ है,
है क़त्ल आम बात तो अगवा का ज़ोर है,
रहज़न डकैत कोई है तो कोई चोर है,
कुछ बेज़मीर देश की करते हें मुखबरी,
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||

हक़ बहनों बेटियों को भी देते नही हें हम,
बहुएँ जलें तो होता नहीं हम को कोई ग़म,
मुल्ज़िम हमें बनाएगा है किसमें इतनी दम;
पापी तो हम सभी हैं कोई नही है कम,
आज़ादी हमने पाई है करने को तस्करी,
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||

गणतन्त्र की हुकूमत दिखती नही कहीं,
क्या अपने संविधान में कुछ रह गई कमी,
जम्हूरियत का ये गुल ऐसे खिला नहीं,
ये लोकतंत्र हमको यूँ ही मिला नहीं,
कुर्बानियों से पाई है मुश्किल से ये घडी,
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||

ऐ नौजवानों देश को आगे बढ़ाओ तुम,
बापू के जैसा रहबर अपना बनाओ तुम,
दस्तूरे हिंद सर पर अपने उठाओ तुम,
अस्मत तिरंगे झंडे की अब तो बचाओ तुम,
तोड़ो इन बेड़ियों को खोलो ये हथकड़ी,
फिर देखो आज आई है छब्बीस जनवरी ||

-आले हसन ख़ाँ (रहबर)

 

(प्रकाशित “प्रयास मैगज़ीन”, कनाडा, दिसम्बर २०१४)

Jan26

 

हैवान है वो आदमी (गज़ल)

हैवान है वो आदमी इंसान नहीं है,
नारी का जिसके दिल में सम्मान नहीं है ||

सौ खूबियां रखते हो बेकार वो सब हैं,
गर तुममें ज़रा सा भी ईमान नहीं है ||

तुम देखो सुनो बोलो हर वक्त ही अच्छा,
हो नाम बुराई में ये शान नहीं है ||

रहने दो नवाज़िश,करम,मेहरबानियाँ अपनी,
कुछ और सितम सहने को अब जान नहीं है||

जब तुमको नहीं रखना कुछ वास्ता हम से,
तो हम को भी दीदार का अरमान नहीं है ||

पत्थर के मकानों में तुम ढूंढते हो किसको,
क्या दिल में तुम्हारे खुदा भगवान नहीं है ||

खाजाते हो धोखा कभी तुम तो “रहबर”,
क्या तुम को भी इंसान की पहचान नहीं है ||

आले हसन ख़ाँ (रहबर)

लोगों में भेदो-भाव (गज़ल)

(प्रकाशित अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका “प्रयास” अक्टूबर २०१४)

लोगों में भेदों –भाव का झगड़ा मिटाइये,
हो आदमी तो आदमी के काम आइये ||

इंसान बनके खुद को पहले दिखाइये,
तब उसके बाद मस्जिदो मंदिर बनाइये ||

इस जात पांति धर्म के बंधन को तोड़कर,
होकर के एक देश का गौरव बढाइये ||

हम है तिरंगी लोग फिरंगी भी जानते,
सब मिलके इस तिरंगे को ऊँचा उठाइये ||

गुरबत का ये अँधेरा है अब बस्तियों में क्यों,
इनमें चराग़-ए-इल्म की दौलत लुटाइये ||

माना के मुश्किलें हैं तो आसानियाँ भी हैं,
उम्मीद की किरन से दिल जगमगाइये ||

आज़ादी हमने पाई है सब कुछ लुटाके आज,
अब राष्ट्र गीत गाइये और मुस्कुराइये ||

ग़म दूर होगा पाओगे एक दम से ताज़गी,
रहबर का कोई गीत गज़ल गुनगुनाइये ||

ज़िंदा दिली से जीने का एक राज़ दूं बता,
मस्ती में रहना है तो ज़रा मुस्कुराइये ||

आले हसन ख़ाँ (रहबर)

अप्सराओं स चेहरा हसीं (नज़्म)

अप्सराओं स चेहरा हसीं पाये हो,
अजनबी हो कहो किसलिए आए हो |
जिंदगी के सफ़र में अकेला हूँ मैं,
लूटने क्या मेरा दिल चले आए हो ||

फूलों की डालियों से हो महके हुए,
तितलियों जैसे आए हो बहके हुए |
हों फरिश्ते भी हैरां जिसे देखकर,
अपनी अंगड़ाई में वो असर लाए हो ||

तुम में लगती नहीं है कोई भी कमी,
दिल को क़दमों में रख दें तुम्हारे सभी |
हुस्न परियों से कोह्क़ाफ़ की लाए हो,
तुम न जाने कहाँ से चले आए हो ||

अबरुओं के ये खंजर और पलकों की तीर,
वार से जिनके देते हो दिल को भी चीर ||
साथ घातक ये हथियार भी लाए हो,
रहज़नो की क्या बस्ती से तुम आए हो ||

चाल भी चलते हो एक मस्तानी सी,
ऐसा लगता है जन्नत से आए अभी |
है गुमान आसमां से उतर आए हो,
कुछ तो बोलो कहाँ से चले आए हो ||

पास आकर के अब दूर जाते हो क्यूँ,
इतनी बेगानगी भी दिखाते हो क्यूँ |
दिल किसी और का जब चुरा लाए हो,
हमसफ़र आज बनने को क्यों आए हो ||

राज़ जो भी हो रहबर बता दो मुझे,
खोलकर अपना दिल भी दिखा दो मुझे |
अब हवासों पे मेरे तुम्ही छाए हो,
प्यार की इस डगर पर भी खुद आये हो ||

आले हसन ख़ाँ (रहबर)

शहीदो लौट आओ (नज़्म)

अजब छाई हुई अहले वतन पर आज गफ़लत है |
हवालों और घुटालों से इन्हें मिलती न फुर्सत है ||
न इनको है कोई परवाह वतन मादर की अस्मत की |
शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||

कभी मज़हब और मिल्लत पर भिड़ा करते हें शोहरत है |
अहिंसा धर्म है इनका लड़ा करते हैं हैरत है ||
न इनको याद है ज़िल्लत वो रुसवाई गुलामी की |
शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||

सभी ज़ुल्मो सितम सहना पुरानी इनकी आदत है |
जिधर देखो उधर फैली यहाँ पर आज दहशत है ||
तुम्हारी याद ऐसे में हमें शिद्दत से है आती |
शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||

तुम्हारे नाम से मिलती जहां में इनको इज्ज़त है |
तुम्हारी सरफरोशी ने ही बख्शी इनको अज़मत है ||
मिटाना है तुम्हें अब इनमें बढ़ते इख्तिलाफों को |
शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||

दिलाई थी जो आज़ादी उसी की आज बरकत है |
इन्हें अशफ़ाक बिस्मिल की न अब तो याद उल्फ़त है ||
दुहाई दे रहा रहबर तुम्हें कब से यकीन जानो |
शहीदो लौट आओ अब, तुम्हारी फिर ज़रूरत है ||

आले हसन ख़ाँ (रहबर)

ऐ मेरे दोस्तो (गजल)

ऐ मेरे दोस्तो कुछ ऐसा एहतमाम करो |
जो टूटे दिल हैं उन्हें जोड़ने का काम करो ||

हमारे बीच में बस प्यार का ही हो रिश्ता|
मिटे ये रंजिशें इस का भी इंतज़ाम करो ||

भुलाके अपने शहीदों को क्या मिला तुमको |
फिर उनके जैसा ही बन करके अपना नाम करो||

हमारे देश की अज़मत यही तिरंगा है |
उसे अदब से हमेशा सभी सलाम करो ||

ये संविधान बड़ी मुश्किलों से पाया है |
इसे संभाल कर रख्खो और एहतराम करो ||

हमारी बस्तियां जलती उजड़ती हें जिनसे |
सुनो कहानियां वो किस्से भी अब तमाम करो ||

पिया था जाम जो अशफाक और बिस्मिल ने |
उन्ही की दोस्ती का पेश सब को जाम करो ||

किसी की आँख में पानी जो देख लो रहबर |
क़रीब जाके बड़े प्यार से कलाम करो ||

आले हसन ख़ाँ (रहबर)