ऑपरेशन

2016-05-24_Operation

इन्ह्माक उर्दू फ़ोरम पर मेरा सस्पेंस माइक्रो फिक्शन का हिंदी रूपांतरण शीर्षक “ऑपरेशन”

ऑपरेशन के पश्चात वह ऐसा लुप्त हुआ कि वह फिर कभी दिखाई नहीं दिया किन्तु आज अकस्मात नगर के माने हुए न्यूरो सर्जन लुक़मान की दृष्टि उस युवा के चेहरे पर पड़ी तो वह बेचैन हो कर अपनी कार से तुरंत बाहर आया तब तक वह बहुत देर से लगे जाम की भीड़ में खो गया, तो डॉक्टर भी उसकी खोज में भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ने लगा अभी कुछ ही दूर आया था कि वह उसे फिर से दिखाई दे गया। तब उसके कक़रीब पहुँच कर डॉक्टर ने कहा, “ ओ मेरे भाई आप कहां खो गये थे आज बहुत मुश्किल से मिले हो आपका क़ीमती सामान मेरे पास रखा है , आख़िर मैं कब तक आपके दिमाग़ को संभाल कर रख सकूँगा।”
ये सुनते ही वह बोला, “ उसे आप ही रख लें अब उसकी ज़रूरत नहीं है।”

अभी डॉक्टर कुछ समझ पाता एक ज़ोरदार धमाके के साथ वह फट गया, सैकडों इंसानों के जिस्म के टुकड़े हवा और गर्द ग़ुबार के साथ उड़ रहे थे और डॉक्टर का भेजा सड़क पर पड़े विधुत के टूटे तारों में उलझा हुआ जल भुन रहा था ।

डॉक्टर लुक़मान आधी रात से खामोश बैठा अन्तरिक्ष में घूर रहा था।

लेखक- आले हसन खां, क़ायमगंज, भारत।

بیٹا


Beta_05-01-2016

خصوصی مائکرو فکشن “بیٹا” تحریر آل حسن خاں قائم گنج انڈیا۔۔

میں جب کبھی رکشہ کی سواری کرتا تھا تو اپنی جیب میں ریزگاری بھر لیتا تھا یہ میری عادت تھی اور رکشہ والے کے جو نصیب میں ہوتا اسے بنا دیکھے دے دیتا۔آج بھی اپنے کرتے کی جیب میں ہاتھ ڈالا اور مٹھّی بھر ریزگاری نکال کر اس رکشہ والے لڑکے طرف بڑھا دی جو مجھے اور میرے ایک دیرینہ دوست کو لیکر میری کوٹھی سے بازار لایا تھا جسے لینے سے اس نے اپنا جھکا ہوا سر نفی میں ہلاتے ہوئے منع کر دیا تو مجھے بہت حیرت ہوئی ۔

“اسے لیکر دیکھو تو سہی یہ تمہارے کرائے سے کم ہوں تو میں اور دے دونگا۔” میرے اتنا کہنے پر اس نے جواب دیا ” نہیں صاحب ! مجھے آپ سے پیسے نہیں لینا ہے۔”


کیوں؟” میں نے حیرت سے سوال کیا اور میرے دوست نے ہم دونوں کے درمیان ہونے والی گفتگو کی طرف متوجہ ہوتے ہوئے ١٠٠ کا ایک نوٹ نکال کر اس کی طرف بڑھاتے ہوئے ناراض ہوکرکہا” ٹھیک ہے جتنے پیسے تیرے بنتے ہیں اس میں سے کاٹ لے۔”
“اس نے نوٹ کی طرف آنکھ اٹھا کر بھی نہیں دیکھا اور بولا “جی نہیں مجھے نہیں لینا ہے۔” یہ سن کر میرا دوست حیرت سے میرا منھ دیکھنے لگا۔” بس صاحب مجھے آپ سے نہیں لینا ہے۔” وہ بدستور سرجھائے ہوئے مجھ سے مخاطب تھا۔
اس لیے میں نے نہایت نرمی کے ساتھ رکشہ سے اترتے ہوئے تجسس سے پوچھا”ایسی کیا بات ہے بیٹا ! تم ایک غریب مزدور ہو اور اپنے مزدوری کے پیسے مجھ سے نہیں لینا چاہتے۔”


صاحب! اس شہر میں میں ایک مہینے سے رکشہ چلا رہا ہوں۔ مجھے کسی سواری نے آج تک بیٹا نہیں کہا آپ نے رکشہ میں بیٹھتے ہی کہا بیٹا بازار تک لے چلو۔ ” کہتے ہوئے وہ پھپھک پڑا

آل حسن خاں “رہبر” قائم گنج بھارت

बेटा


Beta_05-01-2016

(अंतराष्ट्रीय उर्दू फ़ोरम इन्ह्माक पर मेरा मज़दूर दिवस पर आज विशेष माइक्रो फ़िक्शन (लघु कथा) शीर्षक “बेटा” का हिंदी रूपांतरण)

मैं जब कभी रिक्शा की सवारी करता था, तो अपनी जेब में रेज़गारी भर लेता था । ये मेरी आदत थी । और रिक्शा वाले के जो भाग्य में होता उसे बिना देखे दे देता । आज भी अपने कुर्ते की जेब में हाथ डाला और मुठ्ठी भर रेज़गारी निकाल कर उस रिक्शे वाले लड़के की ओर बढ़ा दी जो मुझे और मेरे एक पुराने मित्र को लेकर मेरी कोठी से बाज़ार लाया था । जिसे लेने से उसने अपना झुका हुआ सर नकारात्मकता में हिलाते हुए अस्वीकार कर दिया, तो मुझे अधिक अचम्भा हुआ ।

“इसे लेकर देखो तो सही, ये तुम्हारे किराये से कम हों तो मैं और दे दूंगा ।” मेरे इतना कहने पर उसने उत्तर दिया “ नहीं साहब ! मुझे आप से पैसे नहीं लेना है।”

“क्यूँ?” मैं ने आश्चर्य पूर्वक प्रश्न क्या और मेरे मित्र ने हम दोनों के मध्य होने वाली वार्ता की ओर आकर्षित होते हुए 100 का एक नोट निकाल कर उसकी ओर बढ़ाते हुए क्रोधित होकर कहा “ ठीक है जितने पैसे तेरे बनते हैं इसमें से काट ले ।”

उसने नोट की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा और बोला “ जी नहीं मुझे नहीं लेना है ।” ये सुनकर मेरा मित्र आश्चर्य से मेरा मुंह देखने लगा ।
“ बस साहब मुझे आप से नहीं लेना है ।” वह लगातार सर झुकाये हुये मुझसे संबोधित था । इसलिए मैं ने अत्यंत विनम्रता के साथ रिक्शा से उतरते हुए जिज्ञासावश पूछा,“ ऐसी क्या बात है बेटा! तुम एक ग़रीब मज़दूर हो और अपनी मज़दूरी के पैसे मुझ से नहीं लेना चाहते ।”

“ साहब ! इस शहर में मैं एक माह से रिक्शा चला रहा हूँ, मुझे किसी सवारी ने आज तक बेटा नहीं कहा, आपने रिक्शा में बैठते ही कहा बेटा बाज़ार तक ले चलो ।” कहते हुए वह फफक पडा।

लेखक – आले हसन खां (रहबर) क़ायमगंज, भारत।

ناگن


Nagin_11-21-2016

ہارر مائکرو فکشن “ناگن” تحریر۔ آل حسن خاں قائم گنج’ انڈیا۔

یکایک وہ میرے سامنے تن کر کھڑی ہو گئی اور میں اپنی سدھ بدھ کھو بیٹھا ہم دونوں ایک دوسرے کی آنکھوں میں دیکھے جا رہے تھے کہ اچانک اس نے میری طرف سے منھ پھیرا اور لہراتی ہوئی بل کھاتی ہوئی کسی دوشیزہ کی مانند میرں آنکھوں کے سامنے سے کہیں اوجھل ہو گئی۔ تب مجھے ہوش آیا اور میری شریانوں میں منجمد خون کا دوران شروع ہو گیا خوف و دہشت میں کچھ کمی آئی تو میرے سن دماغ نے کام کرنا شروع کیا تو میں نے جان بچ جانے پر ﷲ کا شکر ادا کیا۔ بات دراصل میری کم عقلی کی تھی مجھے خود اس کھنڈر نما ویران حویلی میں نہیں آنا چاہیئے تھا۔

ہوا یہ کہ مجھے اعلیٰ تعلیم کے لیے قصبے سے شہر آکر رہنا پڑا۔ ندی کے دونوں کنارے بسے شہر کے اس علاقے میں یہ ویران حویلی صبح صبح کسرت کے لیے مجھے پسند آئی اور اس کے جھاڑ جھنکاڑ کی پرواہ نہ کرتے ہوئے میں یہاں کئی دن سے آرہا تھا جہاں لوگ اکیلے آتے ہوئے دن میں بھی ڈرتے تھے جہاں آج میرے سامنے یہ خوفناک واقعہ پیش آیا۔ آپ جاننا چاہیں گے وہ کون تھی اور میں اسے دیکھ کر کیوں سہم گیاتھا تو بتائے دیتا ہوں وہ حسین و جمیل پری پیکر ایک ناگن تھی لیکن باوجود اس حادثے کے میں وہاں جانے سے اپنے کو چاہ کر بھی روک نہ سکا اور کوئی انجانی کشش مجھے وہاں پھر سے جانے کے لیے مجبور کرنے لگی۔ خوف میں کمی ہوتے ہی دو دن بعد میں پھر اسی حویلی میں موجود تھا صبح کا وقت گرمی کا موسم اس میں چلتی ہوئی ہوا کی خنکی جسم کو خود بخود توانائی بخش رہی تھی۔ آج دو دن کے آرام کے بعد میں نے پہلے توخوب ڈنڈ پیلے اور آخر میں جب تھک کر چور ہو گیا تو برامدے کے ایک ستون سے ٹیک لگا کر سستانے کے لیے آنکھ بند کر بیٹھ گیا شاید زیادہ تھکان کی وجہ سے کچھ غنودگی محسوس ہونے لگی تبھی مجھے محسوس ہوا کہ میری ننگی رانوں پر کوئی گرم گرم ہاتھوں سے سہلا رہا ہے میں نے گھبراکر آنکھیں کھولیں تو میرے ہوش اڑ گئے وہی ناگن میرے سامنے موجود تھی اور میرے جسم کی زرا سی جنبش سے وہ ایکدم پھن پھیلا کر کھڑی ہوگئی۔ میری اس سے آنکھیں چار ہوئیں تو مجھ پر نشہ سا طاری ہونے لگا اورمجھے محسوس ہوا کہ مجھ میں اب ہلنے ڈلنےکی بھی طاقت نہیں رہی اور میں اپنی موت کو یوں سامنے کھڑا بے بسی سے دیکھتا رہا۔ میری خاموشی پر اس نے اپنا پھن سکیڑا اور میرے کسرتی بدن پر رینگنے لگی تھوڑی دیر بعد میری دہشت میں کمی آنے لگی اور اس کے اس عمل سے میں بھی ایک عجیب سی لذّت محسوس کرنے لگا۔ اتنے میں میرا ایک دوست جسے یہ جگہ میں نے پہلے بتا رکھی تھی مجھے ڈھونڈتا ہوا وہاں آگیا اور یہ منظر دیکھتے ہی ایک زوردار چیخ کے ساتھ ہی بے ہوش ہو گیا۔

آل حسن خاں”رہبر’ قایم گنج ‘انڈیا

नागिन


Nagin_11-21-2016

अंतराष्ट्रीय फ़ोरम इन्ह्माक में मेरा उर्दू माइक्रो हॉरर फ़िक्शन “नागिन” हिंदी अनुवाद सहित।

अकस्मात वह मेरे समक्ष तन कर खड़ी हो गई और मैं अपनी सुध बुद्धि खो बैठा। हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देखे जा रहे थे कि सहसा उसने मेरी ओर से मुँह फेरा और लहराती हुई बल खाती हुई किसी कोमलांगी जैसी मेरी आँखों के सामने ही अंतर्धान हो गई, तब मैं सचेत हुआ और मेरी धमनियों में स्तम्भित रक्त का संचार आरम्भ हो गया। भय और आतंक में कुछ कमी हुई तब मेरे निष्क्रिय मस्तिष्क ने काम करना आरम्भ किया तो जान बच जाने पर मैंने भगवान को धन्यवाद दिया। बात वास्तव में मेरी अल्प बुद्धि की थी मुझे स्वयं इस निर्जन खण्डहर नुमा भवन में नहीं आना चाहिये था।
हुआ यह कि मुझे उच्य शिक्षा के लिये क़स्बे से नगर आ कर रहना पड़ा। नदी के दोनों किनारे बसे नगर के इस क्षेत्र में ये निर्जन भवन प्रातः भोर में कसरत के लिये मुझे रुचि कर लगा और उसके झाड़ झंकाड की परवाह न करते हुए मैं यहाँ कई दिन से आ रहा था। जहाँ लोग अकेले आते हुए दिन में भी डरते थे। जहाँ मेरे समक्ष ये भयानक घटना घटी। आप जानना चाहेंगे कि वह कौन थी और मैं उसे देख कर क्यूँ भयातुर हो गया था तो बताये देता हूं वह एक सुंदर छवि अप्सरा रूपी एक नागिन थी इस घटना के पश्चात भी मैं चाह कर भी अपने को वहां जाने से रोक न सका था और कोई अनजाना आकर्षण मुझे वहां जाने के लिये मजबूर करने लगा। भय में कमी होते ही दो दिन बाद मैं फिर उसी भवन में उपस्थिति था। प्रातः समय गर्मी का मौसम, वायु में ठंडक स्वयं उर्जा प्रदान कर रही थी आज दो दिन के विश्राम के बाद मैंने पहले तो ख़ूब डण्ड पेले और अंत में जब थक कर चूर हो गया तो वरांडे के एक स्तम्भ से टेक लगा कर सुस्ताने के लिये आँख बन्द कर बैठ गया, संभवतः अधिक थकान के कारण उनींदापन का अनुभव होने लगा, तभी मुझे बोध हुआ कि मेरी नग्न जांघों को अपने गर्म हाथों से कोई स्पर्श कर रहा है मैं ने घबरा कर आँखें खोलीं तो मेरे होश उड़ गये। वही नागिन मेरे सामने उपस्थित थी और मेरे शरीर की तनिक सी बाधा से वह एकदम फन फैलाकर खड़ी हो गई। मेरी उससे आँखें चार हुयीं, तो मुझ पर नशा सा छाने लगा और मुझे अनुभव हुआ कि मुझमें अब हिलने डुलने की भी शक्ति नहीं रही है और मैं अपनी मृत्यु को यूँ सामने खड़े असहाय होकर देखता रहा। मेरे चुप रहने पर उसने अपना फन सूखेड़ा और मेरे कसरती शरीर पर रेंगने लगी। थोड़े समय बाद मेरे भय में कमी आने लगी और उसकी इस प्रक्रिया से मुझे भी एक विचित्र रमणीय अनुभूति होने लगी। इतने में मेरा एक मित्र जिसे मैंने यह स्थान पहले ही बता रखा था मुझे ढूंढता हुआ वहां आगया और यह दृश्य देखते ही मूर्छित हो गया।
समाप्त।

आले हसन खान, क़ायमगंज, भारत।

टेढ़ीकोन एनकाउंटर

terekon1

कई दिन की बढ़ी हुई दाढ़ी मूंछे, उलझे हुए बेतरतीब बाल, शरीर भी मैला कुचैला, पैर नंगे और हाथ एक १२ बोर की बंदूक पर रखे, कमर में कारतूसों की बेल्ट बंधे वह धूल मिटटी व रक्त से लिथड़ा हुआ सड़क के किनारे फुटपाथ पर पड़ा था | शरीर दुबला पतला था | उसका पेट पीठ को लग रहा था| मालूम होता था जैसे कई दिन का भूखा या फिर बीमार था कसबे में जैसे ही यह खबर फैली की पुलिस ने एक शातिर बदमाश टेढ़ीकोन पर एक ज़बरदस्त मुठभेड़ के बाद धराशाही कर दिया है तो कौतूहलवश लोगों की भीड़ वहां पर जमा होने लगी, बच्चे, महिलायें, बृद्ध और युवक सभी उस ओर दौड़े चले जा रहे थे |
टेढ़ीकोन वैसे भी बहुत प्रसिद्ध स्थान था क्योंकि वहां पर बहुधा घटनाएं घटती रहती थीं | एक तो वह सुनसान क्षेत्र था दूसरे कस्बे से शहर की ओर पश्चिम से पूर्व जाने वाली मुख्य सड़क को करीब दो किलोमीटर दूरी पर दक्षिण की ओर से आने वाला रास्ता काटता था | और ठीक पूर्व की ओर उससे कुछ दूरी पर उत्तर दिशा से भी आकर एक दूसरा रास्ता उससे मिलता था जिससे एक टेढ़ा चौराहा सा बन जाता था उसके बाद सड़क उत्तर पूर्व की ओर एक कोण बनाती हुई चली जाती थी संभवतः उस टेढ़े चौराहे को इसलिए टेढ़ीकोन का नाम दिया गया था जिसके आसपास आम, अमरुदों के बाग़ अधिकता से लगे थे और बागों की यह श्रंखला बहुत दूर तक चली गयी थी जिससे बदमाशों के लिये यह एक सुरक्षित और सुगम रास्ता बन गया था इसलिए वर्षों से बदमाशों के बड़े बड़े गिरोह टेढ़ीकोन से निर्भय होकर इधर से उधर आते जाते थे | दिन में जो रमणीक स्थान हरयाली की अति सुंदर छटा बिखेरता आकर्षक एवं मनमोहक दिखाई देता, तो रात्रि में वही भयावह दिखाई देने लगता था, ऐसी बात नहीं थी कि पुलिस विभाग को बदमाशों के इस बाईपास की जानकारी नहीं थी किन्तु उन्हें भी तो अपनी जान अपने कर्तब्यों एवं दायित्वों से अधिक प्यारी थी |
बदमाशों को जब कभी कोई कांड करना होता, तो वह बड़ी आसानी और बिना किसी रिस्क के अपने काम को अंजाम देते और सुरक्षित वहां से चले जाते, अब जब कभी वह वाहनों कि भी लूटपाट करने लगे और साथ ही महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी घटनायें, तो आये दिन कि घटनाओं से तंग आकर लोगों का आक्रोश फूट पड़ा | कस्बे में विरोध प्रदर्शन होने लगे | पुलिस के भी कान हुए | जनता को आश्वासन मिल गया कि बहुत जल्द बदमाशों के विरुद्ध आवश्यक करवाई कि जायेगी और उनका आतंक समाप्त करने के लिये शीघ्र ही प्रभावी क़दम उठाये जायेंगे |
आज जब टेढ़ीकोन पर एक शातिर बदमाश के एनकाउंटर का समाचार आया तो आस-पास के गांव व कस्बे के सभी लोग दौड़ दौड़ कर आये और वहां पर एकत्र हो गए | उन्ही में एक दुबला पतला कम्युनिस्ट नेता भी था जो अपनी आर्थिक और शारीरिक स्थिति से बेखबर अव्यवस्था और अन्याय के विरुद्ध अपना सीना तान कर प्रत्येक मामले में खड़ा हो जाता था | उसके अतिरिक्त कई अन्य पार्टियों के छोटे छोटे नेता एवं कई समाचार पत्रों के संवादाता भी पहुँच गए | संवादाताओं ने पहले तो उस मृत बदमाश के शव के कई कोणों से अपने डिजिटल कैमरों से फोटो निकाले फिर पुलिस पार्टी के साथ, और बाद में जब पुलिस वालों से वे लोग एनकाउंटर के संबंध में विस्तृत जानकारी एकत्र करने लगे, तो उसी समय भीड़ में से किसी ने धीरे से फुसफुसाया,”अरे ! यह तो पागल है, कई दिन से घूम रहा था |”
उसके बाद कई स्वर सुनाई दिए,”अरे, हाँ ! इसे तो हमने भी देखा था |” कोई कह रहा था कि मैंने इसे एक दिन रेलवे स्टेशन पर देखा था तो कोई कह रहा था,”मैंने बस स्टैंड पर देखा था |”
बस फिर क्या था इतना सुनते ही कामरेड ने स्पीच देना आरंभ कर दिया ،“कई रोज़ का था भूखा फुटपाथ पर पड़ा था, कुर्ता उठा के देखा तो पेट पर लिखा था तो सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा” और उसके बाद पुलिस के सामने अपनी मांग का ऐलान कर दिया कि जब तक कोई मजिस्ट्रेट आकर मुआइना नहीं कर लेगा , हम लाश को यहाँ से उठने नहीं देंगे | उसका साथ अन्य पार्टी नेता भी देने लगे |
पुलिस वाले जो पहले से इस पारिस्थित के लिये तैय्यार नहीं थे एकदम आई इस आफ़त से घबरा गए परन्तु शीघ्र ही उन्होंने सबको समझाने बुझाने का भरसक प्रयास किया | उन्होंने स्पष्टीकरण देते हुए कहा,” आप लोगों को गलत फ़हमी हो गई है……हमने कई घंटे मुकाबले के बाद इसे मार गिराया है………आप लोग अकारण बवाल मत काटो……..वरना समझ लो फिर हमसे बुरा कोई न होगा|”
“अच्छा ठीक है ! ……..आप मजिस्ट्रेट साहब को बुलाइये …….. शव उनके आने के बाद ही उठेगा |” कई लोगों ने एक साथ कहा |
“हाँ ! ऐसा ही होगा ………..हमने स्वंय ही मजिस्ट्रेट साहब को सूचना भेज दी है वह बस आते ही होंगे और साथ ही हमारे अन्य उच्च अधिकारी भी आ रहे ……..आप लोग विशवास कीजिए………यह एक बदमाश था जिसे पुलिस पार्टी ने बड़ी बहादुरी के साथ मार गिराया है इस के अन्य साथी अपनी जान बचाकर भाग गए हैं …….. और इस बात कि भी प्रबल संभावना है कि उनमें से एक दो घायल हुये होंगे |
“इसका नाम क्या है ? एक पार्टी के छुटभैया नेता ने पूछा |
“जर्मन! इंस्पेक्टर ने उत्तर दिया |”“जर्मन! एक दूसरी पार्टी के नेता ने बदमाश का नाम दोहराया |
“हाँ जर्मन ! पुलिस हेड कानिस्टेबल ने उसकी ओर मुंह करके अपनी बात पर बल दिया |
“यह कैसा नाम है ! ………. बदमाश हिन्दुस्तानी और नाम जर्मनी ! एक तीसरी पार्टी के नेता ने आश्चर्य प्रकट किया |
“हाँ, बदमाशों के ऐसे ही विलायती नाम होते हैं …….सालों के कई कई नाम होते हैं कोई एक थोड़े ही होता है जो तुम्हें सही सही नाम बता दें | हेड कांस्टेबल ने उत्तर दिया |
“और इसके बाप का नाम ? किसी ने भीड़ में से पूछा |
“क्या करोगे ? बाप दादा का नाम मालूम करके | हेड कांस्टेबल ने थोड़ा खीज कर कहा |
“तो बताने में क्या हर्ज है |” एक युवक ने मुस्कराकर पूछा |
“हिटलर ! पास खड़े दरोगा जी ने उस युवक को उत्तर दिया |
जब इसका नाम जर्मन है तो इस के बाप का नाम तो हिटलर तो होगा ही |”युवक ने मसखरे अंदाज़ में कहा, तो दरोगा जी ने उसे घूर कर देखा |
“जब सब जानते हो, तो क्यों पूछ रहे हो ? हेड कांस्टेबल ने प्रशन क्या |
“परन्तु इसकी जाति क्या है ? सफ़ेद किशतीनुमा टोपी लगाए एक नेताजी ने आगे बढ़कर प्रशन किया |
“जाति जानकर क्या करोगे ?”
“कुछ नहीं , बस ऐसे ही पूछ लिया |” प्रशन करने वाले ने बात बनाई |
“जाति पांति नेतागिरी में काम आती है , इसलिए पूछ रहे हो ना !”
“हाँ दीवानजी आप ठीक कह रहे हो |” एक समाजसेवी ने आगे बढ़कर कहते हुए प्रशन किया,”वैसे दीवानजी, यह है कहाँ का रहने वाला ?”
“अरे साहब, हम आपको क्या बताएँ………….इन साले बदमाशों कि ना तो कोई जाति होती है और ना कोई ठौर ठिकाना ……….ना खुद चैन से रहते हैं और ना हमें चैन से रहने देते हैं |”
उसी समय पुलिस के अन्य अधिकारी भी पहुंच गए और पुलिस वालों ने डंडे घुमाकर भीड़ को दूर हटा दिया, तभी मजिस्ट्रेट साहब अपने अमले के साथ पधारे और आते ही अपने पेशकार को निर्देशित किया |
“पेशकार साहब! बदमाश के शव और घटना स्थल के निरिक्षण का मीमो तैय्यार कर लो !”
“यस सर! कहते हुए पेशकार साहब शातिर बदमाश जर्मन के शव के पास गए, तभी एक ओर से उसी कामरेड ने चीख कर कहा ,”सर! यह बदमाश नहीं है, यह तो नंगा, भूखा कोई भिखारी या पागल है……..पुलिस ने फर्ज़ी एनकाउंटर दिखाया है……..इन पुलिस वालों के खिलाफ़ कारवाई कि जानी चाहिए, जिन्होने एक बेगुनाह भूखे ,प्यासे इंसान को एक टुकड़ा रोटी और एक बूंद पानी तो दिया नहीं , उल्टे उसके पेट में रायफिलों कि गर्म गर्म गोलियाँ उतार दीं | “
सी.ओ. साहब पास खड़े थे उसकी बातों से उनकी बर्दाश्त खत्म हो गई, उन्होंने आव देखा ना ताव, कालर पकड़ कर उस मानव पिंजर को ऊपर उठाया, तो वह उनके हाथ पकड़ कर लटक गया और अपनी आज़ादी के लिये संघर्ष करने लगा और जब वह अपनी इस कोशिष में कामयाब न हो सका तो एक मजबूर परिंदे के भांति छुटने के लिये छटपटाने लगा, परन्तु न तो वहाँ पर मौजूद लोगों की भीड़ में से उसकी किसी ने सहायता की और न ही उस पर किसी को दया आयी अपितु कई शक्तिशाली पुलिस वालों ने उसे अपने मज़बूत हाथों से जकड़ लिया और फिर पुलिस की एक गाड़ी में बड़ी बेरहमी से फेंक दिया, जहाँ गिरते ही वह बेहोश हो गया |
“इसे किसी ऐसे वीरान स्थान पर ले जाकर छोड़ दो, जहाँ से शाम तक वापस न आ पाए |” लम्बे चौड़े सी.ओ. साहब अपने मातहतों को आदेश देकर बड़बड़ाए, “बहुत बवाल मचाता है साला |”
“अभी लीजिए सर ! सिपाही ने सी.ओ. साहब को सैलूट मारा |
“सर, आप ! मजिस्ट्रेट साहब को संभालिये, तब तक मैं पेशकार साहब को शव और घटना स्थल का निरीक्षण करवाये देता हूँ ……….बाद में आवश्यकता होगी तो अपने कुछ लोगों का ब्यान भी दर्ज करवा दूँगा |” पुलिस इन्सपेक्टर सी.ओ. साहब के निकट आकर बहुत अदब से फुसफुसाए |
इस मध्य मजिस्ट्रेट साहब जीप से नीचे उतरे और टेढ़ीकोन के चारों ओर दृष्टि दौड़ा कर वहां के सुंदर दृश्य का जायज़ा लेने लगे ,”वाह! वास्तव में कितना सुंदर स्थान है यह!………कितनी फ़्रेश एयर है यहाँ पर !” वह बुदबुदाए और एक लम्बा श्वांस खींचकर अच्छी खासी ताज़ी आक्सीजन अपने फेफड़ों में भर ली, तभी उनकी द्दृष्टि अमरुद के बाग़ में लगे ताज़े अमरुदों पर जाकर टिक गई , “कितने अच्छे बड़े बड़े अमरुद लगे हैं |” उनके मुंह से इतना निकलना था कि सी.ओ. साहब ने सिपाही को आदेश दिया |
“जाओ, साहब के लिए अमरुद ले आओ !”
“अभी लाया सर ! कहते हुए एक सिपाही आगे बढ़ा |
“नहीं, मेरा मन तो करता है …….इन्हें स्वंय तोड़ कर खाया जाए |”
“तो चलें |”कहते हुए सी.ओ. साहब मजिस्ट्रेट साहब के साथ बातें करते हुए चल दिए |
उसी समय एक बूढा आदमी तीव्र गति से चलता हुआ उनकी ओर आया, तो सी.ओ. साहब ने उसे निकट आता देखकर पूछा ,”यह बाग़ किस का है ?”
“मेरा है साहब ! उसने अदब से जवाब दिया |
“देखो! साहब को तुम्हारे बाग़ के अमरुद बहुत अच्छे लाग रहे हैं……….ज़रा लाकर इनका टेस्ट करवाओ |”
“में अभी तोड़कर लाए देता हूँ साहब!”
“नहीं ,हम लोग स्वंय तोड़ लेंगे |” सी.ओ. साहब ने एक बड़ा सा अमरुद तोड़कर मजिस्ट्रेट साहब कि ओर बढ़ाते हुए कहा,”यहाँ के आम अमरुद बहुत स्वादिष्ट होते हैं |”
इस दरमियान एक के बाद एक कई अमरुद उस बूढ़े ने जल्दी जल्दी तोड़े और उन्हें अपनी झोली में रखकर पास लाया,” यह लीजिए साहब!…….यह बहुत मीठे हैं |”
मजिस्ट्रेट साहब ने एक अमरुद उसकी झोली से उठाया और बोले,” बस एक दो ही काफी हैं………आप इतने अमरुद क्यों तोड़ लाए ?”
“साहब, कुछ घर के लिए रख लीजिए, बच्चे भी खा लेंगे |”
“ठीक है |” सी.ओ. साहब ने जल्दी से एक सिपाहीको इशारा किया,” साहब की जीप में ले जाकर रख दो |”
“अरे हाँ! आप तो यहीं रहते हैं |” अचानक मजिस्ट्रेट साहब को जैसे कुछ याद आ गया ,” ज़रा यह तो बताइए! यह बदमाश कब से यहाँ पर छिपा था ……और आप तो इसे पहचानते भी होंगे |”
“नहीं साहब! मैंने आज से पहले इसे कभी नहीं देखा ………सुबह तड़के पहले जीप की आवाज़ सुनाई दी, फिर उसके कुछ देर बाद गोलियाँ चलने की आवाज़ आई……….मैं बाग़ से बाहर आया तो बहुत से पुलिस वाले खड़े थे उन्होंने मुझे बाग़ में जाने को कहा, बाद में मालूम हुआ कोई बड़ा बदमाश मारा गया है |”
“अरे ! …….ये बड़े मियां क्या जाने, शरीफ़ आदमी हैं |” सी.ओ. साहब बीच में ही उसकी बात काटकर बोले, तो मजिस्ट्रेट साहब ने सी.ओ. साहब की ओर अपनी गर्दन घुमा कर उनसे भी एक प्रशन पूछ लिया,”और हाँ, वह पतला दुबला माकडया सा आदमी क्या कह रहा था, पागल है, फ़कीर है मैं कुछ उसकी बात समझ नहीं सका |”
मजिस्ट्रेट साहब की बात सुनकर सी.ओ. साहब पहले तो खूब हँसे फिर बोले, अरे, वह तो एक पागल नेता है …….कहीं खड़ा कर दो बोलने लगेगा |”
“सही कहते हैं आप !……….नेता तो सभी पागल होते हैं………एक तो हम लोंगों को कोई काम नहीं करने देते, दूसरे जनता को भी पागल बनाए रहते हैं, हर समय सरकारी काम में अपना अनावश्यक हस्तक्षेप करने के आदी हो गये हैं…….खुद भी परेशान रहते हैं हमें भी अपने ढंग से काम नहीं करने देते है और जनता को भी झूठे सच्चे वायदे करके गुमराह करते रहते हैं |”
इधर दोनों उच्च अधिकारी आपस में ग़पशप कर रहे थे उधर पेशकार साहब घटना स्थल का निरीक्षण करते समय बोले,” इन्स्पेक्टर साहब!…….. इस बदमाश के बारे में आपने जो कुछ भी बताया, उसके बारे में तो मैं कुछ नहीं कह सकता, क्योंकि वह तो आप के थाने का रिकार्ड बताएगा, किन्तु मेरी एक बात समझ में नहीं आई कि जब पुलिस कि गोलियों से यह घायल हो गया तो अपनी बंदूक पर बड़े इत्मीनान से हाथ रख कर बड़े आराम से लम्बा लम्बा सड़क पर यह क्यों लेट गया |”
“पेशकार साहब!………बंदूक ही तो इनकी सब कुछ होती है …….उसे मरते दम तक नहीं छोड़ते हैं यह लोग !”
“दूसरी बात यह है इन्स्पेक्टर साहब ! यह बदमाशजो जो पुलिस की वर्दी पहने है वह उसके शरीर पर फिट नहीं है …….देख रहे हैं इसकी टागें खुली हैं और कमर तक भी पैंट नहीं पहुँच रही है, देखिये ! फिलाई की चैन भी खुली है जिससे उसका शरीर देख कर शर्म आरही है ………ऐसा लगता है इसकी चैन ख़राब है |”
“अब क्या बताऊं पेशकार साहब! सिपाहियों का काम तो ऐसा ही होता है ……….. पेशकार साहब भविष्य के लिए चेतावनी दे दूँगा ………. एनकाउंटर के मामले में पूरी सावधानी बरता करें, किसी प्रकार कि लापरवाही बर्दाश्त नहीं कि जायगी |”
थोड़ी देर में ही मजिस्ट्रेट साहब कि जीप का हार्न बजा और पेशकार साहब अपने सरकारी कागजात संभालते हुए तेज़ तेज़ क़दमों से उस ओर चले गए, जहां मजिस्ट्रेट साहब जीप में बैठे हुए उनके आने कि प्रतीक्षा कर रहे थे | उनके जाते ही पुलिसवालों ने बदमाश का शव सील कर पंचनामा भरा और पोस्ट-मार्टम के लिए भेज दिया और लोग तरह तरह कि बातें करते हुए अपने अपने घरों की ओर लौटने लगे | उन्ही में से कुछ महिलाएं आपस में बात चीत कर रही थीं |
“जिजी! मोहे का मालूम थो जे इतनो बडो बदमास है ……मैने स्वयं जाको बस स्टेंड पर बादिन देखो हथो और जाको पूडियां भी दई थीं खान के लय बहुत भूखा लग रहो हथो |”
“ बदमास बहरूपिया होत हैं…….साधू, सन्यासी, भीखारी, किसाऊ को रूप धर लेत हैं |” दूसरी बोली |
“और पागलउ बन जात हैं|…….तीसरी ने भी दोनों की हाँ में हाँ मिलाई |
कुछ दिनों बाद टेढ़ीकोन एनकाउंटर से संबंधित पुलिस पार्टी को पुरुस्कारों की घोषणा सरकार व्दारा की गई और आज समाचार पत्र में उन सभी लोगों के नाम की सूची फोटो सहित प्रकाशित हुई थी जिन्हें मैं बैठा पढ़ व देख रहा था इंसेट में जर्मन डकैत का भी फोटो छपा था | उसी समय एक फटेहाल बूढ़ी महिला मेरे कार्यालय में आई |
“बाबू जी ! लोग कहते हैं आप सब की खबर रखते हैं……….मेरा भी बेटा खो गया है…….क्या आप मुझे बता देंगे कि वह कहाँ मिलेगा ?”
“अरे वाह ! मैं कैसे बता सकता हूँ कि आपका बेटा कहाँ मिलेगा ?”
“क्यों?……क्या आप अखबार वाले बाबू जी नहीं हैं ?”
“हाँ ! अखबार वाला तो हूँ …….किन्तु मैं क्या जानू आप कौन हैं?…..आपका बेटा कौन है, वह क्या करता है?”
बाबू जी, मैं सब बताती हूँ ……..बस आप मेरे लाल को मुझसे मिलवा दीजिए |” कहती हुई वह थकी थकी वहीं फर्श पर बैठ गई |
मैंने कहा ,”कुर्सी पर बैठ कर बताओ |”
उसने कहा,”नहीं मैं यहीं पर ठीक हूँ |”
“बाबू जी ! वह थोड़ा रुककर बोली,”मेरी एक जवान खूबसूरत बेटी थी जिसकी इज्ज़त गांव के कुछ दबंगों के लड़कों ने मिलकर लूट ली थी और उसने लोक लाज के कारण फांसी लगाकर मौत को गले लगा लिया और मेरा बेटा इस ग़म में पागल हो गया ………..जानते हो बाबू जी ! पिछले छ: महीने से मैं उसे तलाश कर रही हूँ लेकिन वह कहीं मिलता ही नहीं |” कहकर वह उदास हो गई |
“आपके बेटे का नाम किया है?……….उस की उम्र क्या है, वह कैसा दिखता है ……..कुछ बता सकेंगी आप ?” मैंने कई प्रशन एक साथ कर दिए तो वह जल्दी से बोली |
“हाँ ! हाँ ! क्यों नही, वह भी बताती हूँ ……उसका नाम रामू है और बस वह तुम्हारी उम्र का होगा और हाँ ! मेरे पास उसकी एक फोटो भी है |” उसने झट से अपनी गन्दी सी पोटली खोली और उसमें कुछ ढूँढने लगी |
“यह लीजिए बाबू जी !” उसने एक मैली कुचैली मुडी तुड़ी फोटो मेरे हाथ में थमा दी |
“यह आपका बेटा है !……मैंने गौर से फोटो देखते हुए चौंक कर पूछा |”
“हाँ बाबू जी ! लगता है आपने इसे कहीं देखा है ………जल्दी बताइए बाबू जी, मैं उससे मिलने के लिये तड़प रही हूँ बहुत दिनों से मैंने उसे नहीं देखा है मेरी ऑंखें पथरा गयीं है उसके इन्तेज़ार में |” कह कर वह फफक पड़ी |
उसके प्रशन और उसकी ऐसी हालत देखकर मैं परेशान हो गया, साथ ही अपने अंदर एक अजीब सी हलचल व बेचैनी महसूस करने लगा, फिर स्वयं को संभालते हुए मैंने उससे कहा, “नहीं ! मैंने इसे कहीं नहीं देखा है |” कहते हुए मैं जल्दी से उठा और फ़ोटो उसके हाथ में थमाकर बाहर की ओर चल दिया, अब मैं यह बात उसे कैसे बताता कि तेरे बेटे कि फोटो कुछ दिनों पहले टेढ़ीकोन एनकाउंटर में मारे गए जर्मन बदमाश से हूबहू मिलती जुलती है |

आले हसन खां, क़ायमगंज, भारत

ٹیڑھی کون انکاؤنٹر

terekon1

کئی دن کی بڑہی ہوئی داڑھی ، الجھے بے ترتیب بال، جسم بھی میلہ کچیلا، پیر ننگے اور ہاتھ ایک ١٢ بور کی بندق پر رکھے، کمر پر کارتوسوں کی بیلٹ با ندھے، دھول مٹی اور خون سے لتھڑا ہوا وہ سڑک کے کنارے فٹ پاتھ پرپڑا تھا- دبلا پتلا جسم اور اس کا پیٹ پیٹھ کو لگ رہا تھا- معلوم ہوتا تھا جیسے کئی دن کا بھوکا یا پھر بیمار تھا قصبے میں جیسے ہی یہ خبر پھیلی کہ پولیس نے ایک شاطر بدمعاش ٹیڑھی کون پر مار گرایا ہے تو تجسس میں لوگوں کی بھیڑ جمع ہونے لگی ، بچے، خواتین، بوڑھے اور نوجوان سبھی اس طرف دوڑے چلے جا رہے تھے -ٹیڑھی کون ویسے بھی بہت مشہور جگہہ تھی کیونکہ وہاں پر اکثر و بیشترایسے واقعیات ہوتے رہتے تھے- ایک تو وہ سنسان علاقہ تھا دوسرے قصبے سے شہر کی طرف سے مشرق کی طرف جانے والی سڑک کو دو کلومیٹر کے فاصلے پر جنوب کی طرف سے آنے والا ایک راستہ اس سے ملتا تھا اور مشرق کی طرف کچھ فاصلے پر شمال کی طرف سے بھی آکر ایک اور راستہ اس سے مل جا تا تھا جس سے وہاں پر ایک ٹیڑھا چوراھا سا بن جاتا تھا اس کے بعد سڑک شمال مشرق کی طرف ایک زاویہ حادہ)اکیوٹ انگل( بناتی ہوئی چلی جاتی تھی شاید اس ٹیڑھے چوراہے کو اسی لیے ٹیڑہی کون نام دے دیا گیا تھا جس کے آس پاس آم و امرود کے باغ کثرت سے لگے ہوئے تھے اور باغوں کا یہ سلسلہ بدماشوں کی پناہ گاہ گنگا ندی کی کٹری تک چلا گیا تھا جس سے بدمعاشوں کے لیے بستیوں کے گرد نواح یہ ایک محفوظ اور آسان سا راستہ بن گیا تھا اس لیے برسوں سے بدمعاشوں کے بڑے بڑے گروہ ٹیڑھی کون سے بلا خوف و خطر ہوکر ادھر سے ادھر آتے جاتے تھے- دن میں جو خوشنما جگہہ اپنے سبزہ دار باغات کی وجہہ سے دلکش اور دلنشیں دکھائی دیتی، وہی شب میں بے حد پراسرار اور خوفناک دکھائی دینے لگتی تھی- ایسی بات نہیں تھی کہ پولیس کو بدمعاشوں کے اس متبادل راستہ کی جانکاری نہیں تھی لیکن انہیں بھی اپنی جان اپنے فرض اور ذمے داری سے زیادہ عزیز تھی-بدمعاشوں کو جب کبھی کوئی واردات کرنا ہوتی، تو وہ بہت آسانی اور بلا کسی خطرے کے کسی واردات کو انجام دیتے اور باحفاظت وہاں سے چلے جاتے، اب جب کبھی وہ گاڑیوں کی بھی لوٹ پاٹ اور ساتھ ہی خواتین کے ساتھ عصمت دری جیسی وارداتون کو انجام دینے لگے، تو آئے دن کی ان وا رداتوں سے تنگ آکرعوام کا غصّہ پھوٹ پڑا- قصبے میں احتجاجی مظاہرے ہونے لگے- پولیس کے بھی کان کھڑے ہوئےاور انتظامیہ کی طرف سے عوام کو یقین دہانی کرائی گئی کہ بہت جلد بدمعاشوں کے خلاف ضروری عمل اور ان کی دہشت گردی ختم کرنے کے لیے پراثر قدم اٹھائیں جائیں گے-آج جب ٹیڑھی کون پر ایک شاطر بدمعاش کے انکاؤنٹر کی خبر آئی تو آس پاس کے گاؤں و قصبے کے سبھی لوگ دوڑ دوڑ کر آنے اور وہاں جمع ہونے لگے- ان میں ہی ایک دبلاپتلا کمونسٹ لیڈر بھی تھا جواکثرو بیشتر اپنی معاشی اور جسمانی حالت سے بے خبر بد انتظامی اور ظلم کے خلاف اپنا سینہ تان کر ہر معاملے میں کھڑا ہو جاتا تھا- اس کے علاوہ کئی دیگر پارٹیوں کے چھوٹے چھوٹے لیڈر و کئی اخباروں کے نمائندے بھی پہنچ گئے- اخباری نمائندوں نے پہلے تو اس بدمعاش کی لاش کے کئی زاویوں سے اپنے ڈجٹل کیمروں سے تصویریں کھینچیں پھر پولیس پارٹی کے ساتھ ، اور بعد میں جب پولیس والوں سے لوگ انکاؤنٹر کے بارے میں تفصیل سے جانکاری جمع کرنے لگے، تو اسی وقت بھیڑ میں سے کسی نے آہستہ سے پھسپھسایا،” ارے! یہ تو پاگل ہے، کئی دن سے گھوم رہا تھا-“اس کے بعد کئی آوازیں سنائی دیں،” ارے، ہاں! اسے تو ہم نے بھی دیکھا تھا-” کوئی کہہ رہا تھا کہ میں نے اسے ایک دن ریلوے سٹیشن پر دیکھا تھا تو کوئی کہہ رہا تھا،” میں نے بس سٹینڈ پر دیکھا تھا-“بس پھر کیا تھا اتنا سنتے ہی کامریڈ نےاپنے مخصوس انداز میں سپیچ دینا شروع کر دیا،”کئی روز کا تھا بھوکا، فٹ پاتھ پر پڑا تھا، کرتا اٹھا کے دیکھا تو پیٹ پر لکھا تھا، سارے جہاں سے اچھا ہندوستان ہمارا” اور اس کے بعد پولیس کے سامنے اپنی مانگ کا اعلان کر دیا کہ جب تک کوئی مجسٹریٹ آکر معائنہ نہیں کرلے گا، ہم لاش کوہرگز یہاں سے اٹھنے نہیں دیں گے اور اس کا ساتھ دیگر پارٹی لیڈربھی دینے لگے -پولیس والے جو پہلے سے ایسے حالات کے سامنا کرنے کے لیے تیار نہیں تھے یکدم آئی اس آفت سے گھبرا گئے لیکن جلد ہی انہوں نے وہاں پر موجود لوگوں کو سمجھا بجھا کرقابو میں رکھنے کی بھر پور کوشش کی ساتھ ہی اپنی صفائی دیتے ہوئے کہا،” لگتا ہے آپ لوگوں کو کوئی غلط فہمی ہو گئی ہے …یہ تو بہت بڑابدمعاش ہے .. ہم نے کئی گھنٹے زبردست مقابلے کے بعد اسے مار گرایا ہے …….آپ لوگ بلا وجہ ہنگامہ کرنا بند کردیں…..ورنہ سمجھ لیں پھر ہم سے برا کوئی نہ ہوگا-“”اچھا ٹھیک ہے !……..آپ مجسٹریٹ صاحب کو بلائیے …..لاش ان کے آنے کے بعد ہی اب تواٹھےگی-” کئی لوگوں نے ایک ساتھ کہا-‘ ہاں! ایسا ہی ہوگا …….ہم نے خود ہی مجسٹریٹ صاحب کو خبر بھیج دی ہے وہ بس آتے ہی ہونگے اور ساتھ ہی ہمارے دیگر حاکم بھی آرہے ہیں …..آپ لوگ ہماری بات کا یقین کیجئے …..یہ واقعی ایک بدمعاش تھا جسے پولیس پارٹی نے بڑی بہادری کے ساتھ زبردست مڈبھیڑ میں مار گرایا ہے لیکن اس کے دوسرے ساتھی اپنی جان بچا کر بھا گنے میں کامیاب ہو گئے ہیں …..پھر بھی ہمیں اس بات کا پورا یقین ہے کہ ان میں سے بھی ایک دو تو زخمی ضرور ہوئے ہوں گے-“” اس کا نام کیا ہے ؟” ایک پارٹی کے چھٹ بھیئے لیڈرنے پوچھا-” جرمن ! انسپکٹر نے بلا تاخیرجواب دیا-“”جر.ر.. ر. ..من !” ایک دوسری پارٹی کے لیڈرنے بدمعاش کے نام کو دہرایا-” ہاں جرمن! ” اب کی بار ہیڈ کانسٹبل نے اس کی طرف رخ کیا اور اپنی بات زور دے کر کہی-” یہ کیسا نام ہے!……. بدمعاش ہندوستانی اور نام جرمنی !” ایک تیسری پارٹی کےلیڈر نے حیرت ظاہر کی-” ہاں ! بدمعاشوں کے ایسے ہی ولایتی نام ہوتےہیں ……سالوں کے کئی کئی نام ہوتے ہیں کوئی ایک تھوڑے ہی ہوتا ہے جو تمہیں صحیح صحیح نام بتا دیں -” ہیڈ کانسٹبل نے تھوڑا کھسیا کر کہا-” اور اس کے باپ کا نام ؟” کسی نے بھیڑ میں سے پوچھا -“کیا کروگے؟ باپ دادا کا نام معلوم کرکے-” ہیڈ کانسٹبل نے تیز لہجے میں جواب دیا۔” تو بتانے میں کیا حرج ہے؟” ایک نوجوان نے طنزیہ مسکراہٹ کے ساتھ پوچھا تو اس سے کچھ فاصلے پر کھڑے دروغہ جی نے اسے غورسے دیکھا اور براسا منھ بنا کر بولے ” ہٹلر !””جب اس کا نام جرمان ہے تو اس کے باپ کا نام ہٹلر تو ہوگا ہی -“نوجوان نے مسخرے انداز میں کہا، تو دروغہ جی نے اسے گھور کر دیکھا -” جب سب جانتے ہو، تو کیوں پوچھ رہے ہو؟” ہیڈ کانسٹبل نے سوال کیا-” اچھا اس کی ذات کیا ہے؟ ” سفید کشتی نما ٹوپی لگائے ایک لیڈر نے آگے بڑھ کر ایک اور سوال داغ دیا-” ذات جان کر کیا کرو گے؟”” کچھ نہیں……..بس یوں ہی پوچھ لیا-“سوال کرنے والے نے بات بنائی -” ذات پات نیتا گری میں کام آتی ہے، اس لیے پوچھ رہے ہو نا-“”ہاں دوانجی آپ ٹھیک کہہ رہے ہیں-” ایک سوشل ورکر نے آگے بڑھ کر ہاں میں ہاں ملاتےہوئے ایک نیا سوال پوچھ لیا،” ویسے دوانجی ، یہ ہے کہاں کا رہنے والا؟”” ارے صاحب ! ہم آپ کو کیا بتائیں ……ا ن سالے بدمعاشوں کی نہ تو کوئی ذات ہوتی ہےاور نہ ہی کوئ ٹھور ٹھکانہ …….نہ خود چین سے رہتے ہیں اور نہ ہمیں چین سے رہنےدیتے ہیں-“اسی وقت پولیس کے دیگر حاکم بھی پہنچ گئے اور پولیس والوں نے ڈنڈے گھما کر بھیڑ کو دور ہٹا دیا، تبھی مجسٹریٹ صاحب بھی اپنے عملے کے ساتھ حاضر ہو گئے اور آتے ہی اپنے پیشکار کو ہدایت دینے لگے،” پیشکار صاحب! بدمعاش کی لاش اور موقع واردات کا میمو تیار کر لو!”” یس سر ! کہتے ہوئے پیشکار صاحب شاطر بدمعاش جرمن کی لاش کے پاس گئے، تبھی ایک طرف سے اسی کامریڈ نے چیخ کر کہا، سر! یہ بدمعاش نہیں، یہ تو ننگا، بھوکا کوئی بھکاری یا پاگل ہے…….پولیس نے فرضی انکاؤنٹر دکھایا ہے ……ان پولیس والوں کے خلاف سخت قانونی کاروائی کی جانی چاہیے ، جنہوں نے ایک بے گناہ بھوکے، ننگے پیاسے انسان کو ایک ٹکڑا روٹی اور ایک بوند پانی تو دیا نہیں الٹے اس کے پیٹ میں رائفلوں کی گرم گرم گولیاں اتار دیں-“سی- او صاحب پاس میں کھڑے تھے اس کی باتوں سے ان کی برداشت ختم ہو گئی، انہوں نے آؤ دیکھا نہ تاؤ، کا لر پکڑ کر اس انسانی پنجرکو اوپر اٹھایا، تو وہ ان کے ہاتھ پکڑ کر لٹک گیا اور اپنی آزادی کے لیے جہدوجہد کرنے لگا اور جب وہ اپنی اس کوشش میں کامیاب نہ ہو سکا تو مجبور پرندے کی طرح چھٹنے کے لیے چھٹ پٹانے لگا، لیکن نہ تو وہاں موجود لوگوں کی بھیڑ میں سے اس کی کسی نے مدد کی اور نہ ہی اس پر کسی کو رحم آیا بلکہ کئی طاقتور پولیس والوں نے اسے اپنے مضبوط ہاتھوں سے جکڑ لیا اور پھر پولیس کی ایک گاڑی میں بے رحمی سے پھینک دیا، جہاں گرتے ہی وہ بے ہوش ہو گیا-“اسے کسی ایسے ویران جگہہ پر لے جاکر چھوڑ دو، جہاں سے یہ شیطان شام تک واپسنہ آ پائے….سالہ سرکاری کام میں رکاوٹ ڈالتا ہے-” دیوقامت سی- او صاحب اپنے ماتحتوں کو حکم دے کر بڑبڑائے ،” بہت بوا ل مچاتا ہے سالہ-“” ابھی لیجئے سر! سپاہی نے سی-او صاحب کو سلوٹ مارا-” سر، آپ ! مجسٹریٹ صاحب کو سنبھالیے، تب تک پیشکار صاحب کو لاش اور جاۓ وقوعہ کا معائینہ کروایے دیتا ہوں ……بعد میں ضرورت ہوگی تو اپنے کچھ لوگوں کا بیان بھی درج کروا دونگا-” پولیس انسپکٹر سی- او صاحب کے پاس آکر بہت ادب سے پھسپھسائے-اس درمیان مجسٹریٹ صاحب جیپ سے نیچے اترے اور ٹیڑہی کون کے چاروں طرف نظر دوڑاکر وہاں کے خوشنما ماحول کا جائزہ لینے لگے،” واہ !!! واقعی کتنی خوبصورت جگہہ ہے یہ !……کتنی فریش ائیر ہے یہاں پر!” وہ بدبدائے اور لمبا سانس کھینچ کر اچھی خاصی آکسیجن اپنے پھیپھڑوں میں بھر لی، تبھی ان کی نظر امرود کے باغ میں لگے تازے امرودوں پر جاکر ٹک گئی، ” کتنے اچھے بڑے بڑے امرود لگے ہیں-” ان کے منھ سے اتنا نکلنا تھا کہ سی-او صاحب نے ایک سپاہی کو حکم دیا-” جاؤ ، صاحب کے لیے امرود لے آؤ!”” ابھی لا یا سر! کہتے ہوئے ایک سپاہی آگے بڑھا-” نہیں، میرا من تو کرتا ہے …..انہیں خود توڑ کر کھایا جاۓ-“” تو چلیں…سر !-” کہتے ہوئے سی-او صاحب مجسٹریٹ صاحب کے ساتھ باتیں کرتے ہوئے چل دیے-اسی وقت ایک بوڑھا آدمی تیز چال سے ان کی طرف آیا، تو سی-او صاحب نے اسے پاس آتا دیکھ کر پوچھا ،” یہ کس کا باغ ہے-“میرا ہے صاحب ! ” اس نے ادب سے جواب دیا -” دیکھو ! صاحب کو تمہارے باغ کے امرود بہت اچھے لگ رہے ہیں ……ذرا ا ن کا ٹیسٹ کرواؤ -“”میں ابھی توڑ کر لا ئے دیتا ہوں صاحب !”” نہیں ! ہم لوگ خود توڑ لیں گے -” سی-ا و صاحب نے ایک بڑا سا امرود توڑ کر مجسٹریٹصاحب کی طرف بڑھاتے ہوئے کہا،” یہاں کے آ م امرود بہت ذائقےدار ہوتے ہیں -“اس درمیاں ایک کے بعد ایک کئی امرود اس بوڑھے نے جلدی جلدی توڑے اور انہیں اپنی جھولی میں رکھ کر پاس لایا،” یہ لیجئے صاحب !……یہ بہت میٹھے ہیں-“مجسٹریٹ صاحب نے ایک امرود اس کی جھولی سے اٹھایا اور بولے،”بس ایک دو ہی کافی ہیں…..آپ اتنے امرود کیوں توڑ لاۓ ؟صاحب ، کچھ گھر کے لئے رکھ لیجئے ، بچے بھی کھا لیں گے -“” ٹھیک ہے-” سی-او صاحب نے جلدی سے ایک سپاہی کو اشارہ کیا ،” صاحب کی جیپ میں لے جا کر رکھ دو -“”ارے ہاں! آپ تو یہیں رہتے ہیں -” اچانک مجسٹریٹ صاحب کو جیسے کچھ یاد آ گیا ،” ذرا یہ تو بتائیے ! یہ بدمعاش کب سے یہاں پر چھپا تھا ….اور آپ تو اسے پہچانتے ہوں گے -“” نہیں صاحب ! میں نے آج سے پہلے اسے کبھی نہیں دیکھا ……صبح تڑکے پہلے جیپ کی آواز سنائی دی، پھر اس کے کچھ دیر بعد گولیاں چلنے کی آواز آئی ….میں باغ سے جب باہر آیا تو بہت سے پولیس والے کھڑے تھے انہوں نے مجھے باغ میں جانے کو کہا، بعد میں معلوم ہوا کوئی بڑا بدمعاش ما را گیا ہے-“” ارے!….. یہ بڑے میاں کیا جانے، شریف آدمی ہیں -” سی-او صاحب درمیان میں ہی اس کی بات کاٹ کر بولے تو مجسٹریٹ صاحب نے سی-او صاحب کی طرف اپنی گردن گھمائیاور ان سے بھی ایک سوال پوچھ لیا ،” اور ہاں، وہ پتلا دبلا ماکڑ سا آدمی کیا کہہ رہا تھا ، پاگل ہے، فقیر ہے میں کچھ اس کی بات سمجھ نہیں سکا -“مجسٹریٹ صاحب کی بات سن کر سی-او صاحب پہلے تو خوب ہنسے پھر بولے،” ارے، وہ تو ایک پاگل نیتا ہے …..کہیں کھڑا کر دو بولنے لگےگا…..آٹا مہنگا، تیل تیزبکتا رہتا ہے -“” صحیح کہتے ہیں آپ!……نیتا تو سبھی پاگل ہوتے ہیں ……ایک تو ہم لوگوں کو کوئیکام نہیں کرنے دیتے، دوسرے عوام کو بھی پاگل بناۓ رہتے ہیں ، ہر وقت سرکاری کام میں اپنا غیر ضروری دخل کرنے کے عادی ہو گئے ہیں …..خود بھی پریشان رہتے ہیں اور ہمیں بھی اپنے ڈھنگ سے کام نہیں کرنے دیتے ہیں اور عوام کو بھی جھوٹے وعدے کرکے گمراہ کرتے رہتے ہیں -“ادھر دونوں بڑے حاکم آپس میں غپ شپ کر رہے تھے ادھر پیشکار صاحب جائے واردات کا معائینہ کرتے ہوئے پوچھ رہے تھے ،” انسپکٹر صاحب !……..اس بدمعاش کے بارے میں آپ نے جو کچھ بھی بتایا،اس کے بارے میں تو میں کچھ نہی کہہ سکتا ، کیوںکہ وہ تو آپ کے تھانے کا ریکارڈ بتاۓ گا، لیکن میری ایک بات سمجھ میں نہیں آئی کہ جب پولیس کی گولیوں سے یہ زخمی ہو گیا توبجاۓ بھاگنے کے اپنی بندوق پراطمینان سے ہاتھ رکھ کر بڑے آرام سے لمبا لمبا سڑک پر یہ کیوں لیٹ گیا-“” پیشکار صاحب! بھاگتا کیا سالہ؟…جب ہم اسے بھاگنے دیتے تب نا !……اور بندوق ہی تو ان کی سب کچھ ہوتی ہے …….جسے مرتے دم تک نہیں چھوڑتے ہیں یہ لوگ!”” دوسری بات یہ ہے انسپکٹر صاحب یہ بدمعاش جو پولیس کی وردی پہنے ہے وہ اس کےجسم پر فٹ نہیں ہے ……دیکھ رہے ہیں اس کی ٹانگیں کھلی ہیں اور کمر تک بھی پینٹ نہیں پہنچ رہی ہے دیکھئے! فلائی کی چین بھی کھلی ہے جس سے اسکی بے پردگی ہو رہی ہے جسے دیکھ کر شرم محسوس ہو تی ہے ……ایسا لگتا ہے اس پینٹ کی چین بھی خراب ہے -“” اب کیا بتاؤں پیشکار صاحب سپاہیوں کا کام تو ایسا ہی ہوتا ہے ……پیشکار صاحب آئندہ کے لیے وارنننگ دے دونگا …… انکاؤنٹر کے معاملے میں پوری احتیاط برتا کریں ، کسی قسم کی لا پروائی برداشت نہیں کی جائےگی -“تھوڑی دیر میں ہی مجسٹریٹ صاحب کی جیپ کا ہارن بجا اور پیشکار صاحب اپنی سرکاری کاغذات سنبھالتے ہوئے تیز تیز قدموں سے اسے طرف چلے گئے ، جہاں مجسٹریٹ صاحب جیپ میں بیٹھے ہوئے ان کے آنے کا انتظار کر رہے تھے- ان کے جاتے ہی پولیس والوں نے بدمعاش کی لاش سیل کر پنچ نامہ بھرا اور پوسٹ مارٹم کے لیے بھیج دیا۔ اس کے بعد لوگ طرح طرح کی باتیں کرتے ہوئے اپنے اپنے گھروں کی طرف لوٹنے لگے- ان ہی میں سے کچھ دیہاتی خواتین آپس میں بات چیت کرتی ہوئی جا رہی تہیں -“جی جی ! موہے کا معلوم تھو. ……جے اتنو بڑو بدماس ہے……میں نے سوئم جا کو بس سٹینڈ پے با دن دیکھو تھواور جاکو پوریاں بھی دئی تھیں کھان کے لئے ….بہت بھوکا لگ رو تھو -“”بدماس بہروپیا ہوت ہیں ……سا دھو، سنت، سنیاسی ، بھکاری کساؤ کو روپ دھر لیت ہیں -” دوسری نے جواب دیا -” اور پاگلو بھی بن جات ہیں -” تیسری نے بھی دونوں کے ساتھ ہاں میں ہاں ملائی -کچھ دنوں بعد ٹیڑھی کون انکاؤنٹر سے متعلق پولیس پارٹی کوسرکار کی طرف سے انعاموں کا اعلان کیا گیا اور آج اخباروں میں ان سبھی لوگوں کے نام کی فہرست تصویروں کے ساتھ شایع ہوئی تھیں جو میں بیٹھا پڑھ رہا تھا انسیٹ میں جرمان ڈکیت کی بھی تصویرچھپی تھی – اسی وقت ایک فٹے حال بوڑھی میرے دفتر میں آئی-” بابو جی ! لوگ کہتے ہیں آپ سب کی خبر رکھتے ہیں ……میرا بیٹا بھی کھو گیا ہے….کیا آپ مجھے بتا دیں گے کہ وہ کہاں ملے گا ؟”” ارے واہ ! میں کیسے بتا سکتا ہوں کہ آپ کا بیٹا کہاں ملےگا؟”” کیوں ؟……. کیا آپ اخبار والے بابو جی نہیں ہیں ؟”” ہاں ! میں اخبار والا تو ہوں ……لیکن میں کیا جانو آپ کون ہیں ؟…..آپ کا بیٹا کون ہے ، وہ کیا کرتا ہے؟”” بابو جی! میں سب بتاتی ہوں …..بس آپ میرے لال کو مجھ سے ملوا دیجئے -” کہتی ہوئی وہ تھکی تھکی وہیں فرش پر بیٹھ گئی -میں نے کہا “کرسی پر بیٹھ کر بتاؤ-“اس نے کہا “نہیں میں یہیں پر ٹھیک ہوں……..بابوجی !” وہ تھوڑا رک کر بولی ،” میریایک جوان خوبصورت بیٹی تھی جس کی عجت گاؤں کے کچھ دبنگوں کے لڑکوں نے مل کر لوٹ لی تھی اور اس نے لوک لاج کے کارن پھانسی لگا کرموت کو گلے لگا لیا تھا- میرا بیٹا اس گم میں پاگل ہو گیا……جانتے ہو بابو جی! پچھلے چھے مہینے سے میں اسے تلاس کر رہی ہوں لیکن وہ کہیں ملتا ہی نہیں -” کہہ کر وہ افسردہ ہو گئی-” آپ کے بیٹے کا نام کیا ہے؟…….اس کی عمر کیا ہے ، وہ کیسا دکھتا ہے …..کچھ بتاسکیں گی آپ؟” میں نے کئی سوال ایک ساتھ کر دیے تو وہ جلدی سے بولی-” ہاں! ہاں! کیوں نہیں، ا بھی بتاتی ہوں ……..اس کا نام رامو ہے اور وہ بس تمہاری عمر کا ہوگا اور ہاں ! میرے پاس اس کا ایک پھوٹو بھی ہے-” اس نے جھٹ سے اپنی گندی سی پوٹلی کھولی اور اس میں کچھ تلاش کرنے لگی -” یہ لیجئے بابو جی!” اس نے ایک میلی کچیلی مڑی تڑی فوٹو میرے ہاتھ میں تھما دی-” یہ آپ کا بیٹا ہے !” میں نے غور سے فوٹو دیکھتے ہوئے چونک کر پوچھا-” ہاں بابو جی ! لگتا ہے آ پ نے اسے کہیں دیکھا ہے ……جلدی بتائیے بابوجی ، میں اس سے ملنے کے لیے تڑپ رہی ہوں، بہت دنوں سے میں نے اسے نہیں دیکھا ہے- میری آنکھیں اس کے انتظار میں پتھرا گئیں ہیں -” کہہ کر وہ ففک پڑی -اس کے سوال اور اس کی حالت دیکھ کر میں پریشان ہو گیا، ساتھ ہی اپنے اندر ایک عجیب سی کیفیت محسوس کرنے لگا، پھر خود کو سنبھالتے ہوئے اس سے کہا ،” نہیں ! میں نے اسے کہیں نہیں دیکھا ہے-” کہتے ہوئے میں جلدی سے اٹھا اور فوٹو اس کے ہاتھ میں تھما کر باہر کی طرف چل دیا ، اب میں یہ بات اسے کیسے بتاتا کہ تیرے بیٹےکی پھوٹو کچھ دنوں پہلے ٹیڑہی کون انکاؤنٹر میں مارے گئے جرمن بدمعاش کی فوٹو سے ہوبہو ملتی جلتی ہے-
آل حسن خاں قاںٔم گنج انڈیا۔

स्वतन्त्रा दिवस – یوم آزادی

स्वतन्त्रा दिवस की विश्व के कोने में कोने में बसने वाले सभी भारतीयों को शुभकामनाएं !

हमारे बीच में बस प्यार का ही हो रिश्ता,
मिटे ये रंजिशें इस का भी इंतज़ाम करो |

हमारी बस्तियां जलती उजड़ती हें जिनसे,
सुनो कहानियां वो किस्से भी अब तमाम करो ।

हमारे देश की अज़मत यही तिरंगा है,
इसे अदब से हमेशा सभी सलाम करो |

– आले हसन खां (रहबर) क़ायमगंज, भारत।

 

یوم آزادی کی دنیا کے کونے کونے میں بسنے والے ہندوستانیوں کو مبارک باد

ہمارے بیچ میں بس پیار کا ہی ہو رشتہ
مٹیں یہ رنجشیں اس کا بھی انتظام کرو

ہماری بستیاں جلتی اجڑتی ہیں جنسے
سنو کہانیاں وہ قصے بھی اب تمام کرو

ہمارے دیش کی عظمت یہ ہی ترنگا ہے
اسے ادب سے ہمیشہ سبھی سلام کرو

 

آل حسن خاں “رہبر” قائم گنج بھارت

تولا بابا

tola-baba1

افسانہ” تولا بابا” – افسانہ نگار – آل حسن خاں

 

میرےاسکول میں قدم رکھتے ہی سعید نے پکارا ” لو ایک اور مہارتھی پدھار رہے ہیں “لو ایک اورعظیم شخصیت تشریف لا رہی ہے”

” میں تو ہر روز حاضری لگا جاتا ہوں …….بات کرو گپتا جی کی جو ماہ میں ایک بار منھ چمکاتے ہیں ” یہ کہکر میں بیٹھ گیا

” باجپئی جی ! میں کیا سعید ہوں جسکو پڑھانے کے اتیریکت(علاوہ ) کوئی کام نہیں ہے اکلوتا داماد ہوں – میرے پاس اس سڑھی سنستھا(ادارہ) کے لئے سمے(وقت) ہی کہاں ہے؟”

“تو چھوڑ کیوں نہیں دیتے گپتا جی ؟”

چھوڑ تو دوں سعید بھائی! تم لوگوں سے محبّت ہے اس لئے چلا آتا ہوں –

” ایکدم جھوٹھ ! ویتن(تنخواہ) منی آرڈر سے پہنچ جاۓ تو ورش(سال) بھر نہیں دکھائی دوگے-”

” اے یادو ! پہلے اپنے گریبان میں جھانکو میری تو مجبوری ہے پرنتو(لیکن) تم گاؤں میں رہ کر بھی نہیں آتے ہو –”

” میں بھی مجبور ہوں شری مان جی(موحترم) میری کھیتی ہے’ جانور ہیں اور مقدموں کے لئے کچہری کے چکّر کاٹنے پڑتے ہیں پھر بھی جو سمے(وقت) بچتا ہے میں تم سے کہیں ادھک(زیادہ) اوپستہت(حاضر) ہوتا ہوں-”

” چھوڑو یارو ! ہم سب ایک ہی تھیلی کے چٹے بٹے ہیں کوئی ایک دن تو کوئی چار دن آتا ہے –” ماحول گرم ہوتے دیکھ کر میں نے بات ہنسی میں اڑا دی- اپنا سعید تو ہم سب کی ڈیوٹی پوری کر دیتا ہے –

” تبھی تو ہیڈ ماسٹر کا چارج پایا –” سریواستو مسکرایا –

” یہ تو جیادتی(زیادتی) ہے ” کتھیریا نے شکایت کی ” چانس میرا تھا دے دیا انہیں –”

” بھیا تمہیں کیسے ملتا ؟” سریواستو نے بڑے تعجب سے پوچھا ” تم مجھ سے کیا یادو تک سے جونیر ہو’ ہاں اگر باجپئی جی یا گپتا جی شکایت کرتے تو ٹھیک ہے دونوں سعید سے سینیر ہیں-”

” میں شیڈولڈ کاسٹ کنڈیڈیٹ(تخسو چت ذات ) ہوں –”

” اچھا تو پروموشن میں بھی رزرویشن چاہیے” گپتا جی نے طنز کیا ” پڑھنا آے نہ پڑاھانا…….پھر بھی نوکری مل گئ یہ کیا کم بات ہے ”

” رزرویشن ہمارا ادھکار ہے ادھکار( رزرویشن ہمارا حق ہے حق)-”

” ادھکار نہیں ہم سرونوں کی دیا کہو’ دیا ( حق نہیں ہم اونچی ذات والوں کا رحم کہورحم) –”

” سریواستو بھی چڑھ لئے تو میں نے دل جوئی کی ” ارے کتھیریا ! کاہے کو دند(شور) مچاۓ ہو- دونوں ایک ہو تم شیڈولڈ کاسٹ سعید الپ سنکھیک(دونوں ایک ہو تم تخسوچت ذات سعید اقلیت) –”

“واہ باجپئی جی! الپ سنکھیک (اقلیت) میں ہوں یا تم سب-”

” ہم؟” سب نے تعجب سے پوچھا –

” ہاں ! بہو سنکھیک(اکثریت) کا ڈھونگ کرتے ہو ‘ حالانکہ تم سب الگ الگ الپ سنکھیک(اقلیت) ہو –”

” وہ کیسے ؟” کتھیریا حیرت میں پڑ گیا –

” ارے بھیا ! سیدھی سے بات ہے – جب سب ایک ہو پھر ہریجن(نیچی ذات ) ‘ سرون(اونچی ذات )’ بیک ورڈ ‘ فارورڈ کیا ہے ؟”

” کون کہتا ہے ہم سب ایک نہیں ہیں ؟”

” یار سریواستو ایک ہو تو منڈل کمیشن سے کیوں بھڑکتے ہو ؟”(اقلیتی پسماندہ غریب اور چھوٹی ذاتوں کے لئے بناےٴ گئے کمیشن کا نام منڈل)

“وہ اس لئے میاں ! کہ اس سے سماج جا تیوں میں بٹ جاےگا –”( کہ اس سے معاشرہ ذاتوں میں بٹ جائےگا)

” وہ تو ہمیشہ سے بٹا ہے –”

جوشیلی بحث کا موضوع منڈل بنا تو میں نے جھٹ کمنڈل کی کمند پھینکی ” نہیں ہم کبھی نہیں بٹے ہیں – ہم سب ہندو ہیں- وشواس(یقین) نہ ہو تو تم پو چھہ لو –”(کمنڈل ہندو تنظیموں کی مذہبی تحریک کا نام )

” کیا ؟”

یہ ہی کے رام مندر ہم سب کا ہے کہ نہیں ؟”( رام مندر جسے بابری مسجد کی جگہ پربنانے کی ہندو تنظیموں کی تجویز ہے )

” ارے پنڈت جی ! وہ تو دھرم(مذہب) کا معاملہ ہے –”………

” مندر تو ہم سب کا ہے-” کتھیریا چہکا باقی نے گردن ہلائ

” پھر تو ہریجن(اچھوت ذات/چھوٹی ذات) بھی اس کا پجاری بن سکےگا ؟’ سعید نے ایک اور تیر چھوڑا تو میں گھبرا گیا لیکن بھلا ہو گپتا جی کا وقت پر مورچہ سمحال لیا – ” وہ پجاری بنے یا نہ بنے – لیکن ہم تمہیں یہاں نہیں رہنے دیں گے –”

” ہم تویہیں رہینگے اوپر نہ سہی تو اس زمین کے نیچے لیکن فکر کرو اپنی چتا( ہندو مردوں کو جلانے کی رسوم ) کی سب راکھ ہوا میں اڑ جاےگی –”

” اڑ نہیں جاےگی میاں ! یہ کہو کہ پورے برھمانڈ(عالم) میں چھا جاےگی –”

گپتا جی اور سعید کی گرما گرم بحث سنتے ہی سب قہقہے مارنے لگے لیکن گپتا جی نے کھسیا کر سیدھا وار کیا-” خیر میاں! تم کہیں بھی رہو لیکن ہم مندر تو وہیں بنایں گے –”

” اتنا آسان نہیں ہے ……….وہ جگہ مسجد کی ہے اور ہمیشہ مسجد کی رہےگی ……ہاں اگر عدالت مسجد سے پہلے وہاں مندر بتاتی ہے تو اور بات ہے –”

” نیالیہ کیا نرنے کریگا ‘ یہ ہماری بھاؤناؤں کا پرشن ہے –”(عدالت کیا فیصلہ کریگی ‘ یہ ہمارے جذباتوں کا سوال ہے )

” گپتا جی بھاونایں(جذبات) ہماری بھی ہیں –”

” تمھاری بھاونایں(جذبات) کیا ہمارے برابر ہیں _”

” کہیں بھاؤناؤں میں بھی انتر ہوتا ہے ؟”( کہیں جذباتوں میں بھی فرق ہوتا ہے)

” ہاں میاں ہوتا ہے !”

اور اس سے پہلے کہ بھاونایں رنگ لاتیں چپراسی ٹپک پڑا ” صاحب بچّے بھاگ گے –”

” کہاں ؟” سعید بیچین ہو گیا –

” تولا بابا کو دیکھنے –”

” وہ جو صبح سے تیراہے والے پیپل کے نیچے آسن جماۓ بیٹھے ہیں ؟”

” جی یادو جی !-”

” چلو انہیں سے نرنے(فیصلہ) کراتے ہیں ……سنا ہے بہت پہنچے ہوے ہیں –” کتھیریا نے تجویز رکھی اور سب مان گے-”

تھوڑی حیلہ حوالہ کرکے سعید بھی چل دیا –

الجھے بال ‘ بڑھی ہوئی داڑھی ‘ لاغر جسم ‘ میلے کچیلے ‘ چندھیائی آنکھوں والے بابا کے درشن(دیدار) کر میں نے سوچا ” آج کل رام جانکی رتھ ‘ گا ے کی پونچھ ‘ رام جیوتی ‘ایک روپیہ ایک اینٹ ‘ چرن پادوکا پوجن ‘ رام کتھا ‘ رام پتا کا ‘ رام پرساد اور رام رنگ کے ابھیانوں(مہمات) سے آدمی کتنا توہم پرست ہو گیا ہے کہ پاگلوں کو بھی سادھو’ سنت’مہاتما یا پیر’ فقیر سمجھنے لگا ہے –

( “آج کل رام جانکی رتھ ‘ گا ے کی پونچھ ‘ رام جیوتی ‘ایک روپیہ ایک اینٹ ‘ چرن پادوکا پوجن ‘ رام کتھا ‘ رام پتا کا ‘ رام پرساد اور رام رنگ” یہ سب ان مہمات کے نام ہیں جو ہندو مذھبی اور سیاسی پارٹیوں نے بابری مسجد کو شہید کرنے کے لئے چلاے تھے )

جواب کے انتظار میں تپتی دوپہر ڈھلنے لگی اور جب بھوک پیاس ستانے لگی تو ہم نے ایک دوسرے کو کھسکنے کا اشارہ کیا’ تبھی گپتا جی نے آخری بار بڑی عقیدت اور عاجزی سے پھر اپنا سوال دہرادیا ” مہاراج بتا یے نا! کس کی بھاونایں ادھک ہیں ؟”(کسکے جذبات زیادہ ہیں)

” برابر’ یہ دیکھو! –” کہے کر بابا نے اپنا ہاتھ پھول مالاؤں سے اوپر اٹھایا – جس میں ایک ترازو لٹک رہی تھی – جسکی ڈنڈی ٹہنی کی اور پلڑے مٹی کی پیالیوں کے تھے-

تولا بابا کی خاموشی ٹوٹتے ہی گپتا جی پاگلوں کی طرح چیخنے لگا –”پاگل ہے یہ تو بھاونایں(جذبات) ترازو میں تولتا ہے – کیا ہمارے دیش(ملک) کے نیتا(لیڈر) پاگل ہیں جو بھاؤناؤں کا انتر بھلی بھانت جانتے ہیں ؟”

سعید’ یادو ‘ کتھیریا اور سریواستو حیران پریشان اسے سمجھا رہے تھے اور میں تذبذب میں کھڑا سوچ رہا تھا ” ہے بھگوان ! واستو میں پاگل کون ہے وہ لوگ یا یہ تولا بابا ؟”

 

آل حسن خاں”رہبر’ قایم گنج ‘انڈیا

 

نادان کی دوستی

“بچّو ! آج تم لوگوں کی چھٹّی۔” اچانک مولوی صاحب نے کہا تو سب شاگرد چونک پڑے‛ مگر ملّو نے تجسس سے پوچھا”مولی صاب! آج چھٹّی کیوں کردی؟”

“ارے !آج شام کو مشاعرہ ہے تم سب بھی سننے چوک میں آجانا اور جب میں شعر پڑھوں تو واہ! واہ!! بھی کرنا۔”

دوسرے دن مولوی صاحب نے ملّو کو پکڑا”ابے ملعون! تجھ سے اتنی واہ! واہ!! کرنے کے لئے کس نے کہا تھا….ایک تو تو ٹھیک میرے سامنے بیٹھ گیا….اوپر سے اتنی واہ واہ کی کہ شعر پڑھنا ہی مشکل ہو گیا….کمبخت میرے پڑھنے سے پہلے ہی واہ واہ شروع کردیتا…. تو نے تو مجھے پریشان کردیا۔”

آج جب بھی میں فیس بک پر کسی کے انتقال کی خبر کے ساتھ ہی سیکڑوں لائک دیکھتا ہوں تو مجھے ملّو جیسے نادان دوست کی بہت یاد آتی ہے۔

 

آل حسن خاں قاںٔم گنج انڈیا۔